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कला रत्न भवन में साहित्य समारोह

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गौरैया दिवस

गौरैया दिवस चूं- चूं - चूं वो चहका करती,  संग सखियों के फुदका करती।  मनभावन गीत सुनाया करती गौरैया घर आया करती । मतवाली सी डोला करती  मस्ती में वह बोला करती।  मगर बोलती आज नहीं है  दिखती भी वह बहुत नहीं है।  पेड़ों की अब छाँव नहीं है  गौरैया के गाँव नहीं है।  गौरैया घर आए कैसे  चूं-चूं चहक सुनाएं कैसे।  बंद घरों में हम बैठे हैं  मानव-मद में हम ऐंठे हैं।  लोहे के अब वृक्ष बड़े हैं तनकर देखो खूब खड़े हैं।  गौरैया की सांस छीनते पाषण हृदय क्यों नहीं पिघलते करुणा अपने हिये जगाएं  आओ गौरैया को बचाएं। सुनीता बिश्नोलिया 

जय श्री राम - राम की अठखेलियाँ

नन्हें राम  देख अठखेलियाँ रामा की  खुश होती कौशल्या माँ उनका गिरना,उनका उठना देखकर मुस्कुराती माँ  राम राम नाम रट ले तू मनवा अविराम बड़े हैं भाग मेरे जो प्रभु प्रभु इस रूप में आए  रूप उनका सलोना ये  आँखों में भर रही है माँ।।  सुनीता बिश्नोलिया 

राम नाम जप ले तू मनवा अविराम

राम नाम जप ले तू मनवा अविराम   राम नाम जप ले तू मनवा अविराम - 2   राम नाम जप ले उसे दुख कहाँ काम राम की अठखेलियाँ   जग में जिसका कोई ना उसके श्री राम      जग में जिसका कोई ना उसके श्री राम   संतो के भी राम, वो ही भक्तों के राम.. 2   अयोध्या के आँगन में ममता की छांव   भक्तों के भगवन, ये नदिया में नाव    राम जी के तरकश पे दुष्टों का नाम-2   राम नाम जप ले उसे दुख कहाँ काम।  सुनीता बिश्नोलिया 

नारी कभी ना हारी एवं सपनाज़ ड्रीम्स चेरिटेबल ट्रस्ट, नमकीन सपने - लोकार्पण और पुरस्कार वितरण समारोह

लोकार्पण  एवं पुरस्कार वितरण समारोह - नारी कभी ना हारी लेखिका साहित्य संस्थान एवं सपनाज़ ड्रीम्स चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर  हार का स्वाद चखकर ही जीत की राह मिलती  भला सागर के पानी में कभी क्या दाल गलती है,  हृदय उम्मीद की मीठी नदी का स्रोत बहने दो  मन की मीठी नदी संग चल राह मंजिल देखती है।        राजस्थान लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं 'नारी कभी ना हारी' संस्था की संस्थापिका आदरणीय वीना चौहान दी का यही मानना है कि हार जाओ मगर जीतने के लिए..बिखरी हो टूटो मत, जुड़ना है और पंख फैलाकर उड़ना है। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि ' नारी कभी ना हारी संस्था में आप ही की प्रेरणा से हर नारी उड़ने को बेताब है। आप भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी 'नारी कभी ना हारी' के माध्यम से महिलाओं को एक मंच पर लाने का प्रयास  कर रही हैं।  सावित्रीबाई फुले   स्वयं को एक साधारण पत्थर मानकर आँसुओं की गागर तले दबी अपनी सखी नीलम शर्मा को उनके ..अमूल्य होने का अहसास करवाकर पीड़ा के गहन  समुद्र से बाहर निकलने में सहयोग किया।