ताज और यमुना का दर्द
बेबस बूढी अबला सी,बीमार पड़ी यमुना देखी
संकोच से सिमटी नारी सी,पीड़ा से भरी यमुना देखी,
कीचड़ से सनी साड़ी पहने,दुर्गंध भरी यमुना देखी
अपनों के दिए घावों को लिए,घायल हो चली यमुना देखी,
ताज सजाए सिर पर जो,पानी को तरसती यमुना देखी
गोदी के हर इक पंछी पर,ममता को लुटाती यमुना देखी,
ताज की सुन्दरता उससे,इस बात से वो अंजान दिखी,
अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए,चुपचाप पड़ी यमुना देखी,
उधर रो रही है यमुना और इधर सिसकता ताज
कहता हमसे खतरे में है ,माँ यमुना की लाज,
खुद के मट मैले तन से ,है दाग हटाता ताज
गर्व से फिर भी शीश उठाए, खड़ा शान से ताज।
आएगा फिर कोई शाहजहाँ करके बुलन्द आवाज
फिर रूप हमारा लोटाएगा, हमसे कहता है ये ताज,।
सुनीता बिश्नोलिया
mast hai mam maine padh li maza aa gya
जवाब देंहटाएं