#अहंकार
लोभ-मोह-मद-अहंकार में डूब रहा इंसान,
तृष्णा की तृप्ति के हेतु करता धरती को शमशान ।
स्वर्ण महल में रहते सारे अहंकार के मारे,
अहंकार के कारण इनके गूंज रहे जयकारे।
अपने अहम् में जीते हैं सब खुद को कहें खुदा रे
पर अहंकार से कोई न जीता बड़े-बड़े भी हारे।
क्या मिट्टी की काया को कोई संग में ले जा पाया,
सृष्टि के नियम के आगे 'दंभ ' रावण का भी ना टिक पाया।
सागर की उत्ताल-तरंगे, अहं में गरज रहीं थीं,
राम के क्रोध के कारण अब चरणों में आन गिरी थीं।
भूल गया जमीं अपनी को अहंकार में पड़कर,
अहंकार के कारण फिर वो आन गिरा जमीं पर ।
धन की गांठ न संग जाएगी सुन ओ!अहं के मारे
झूठी शान में बजते रहते थोथे चने बिचारे।
त्याग तू मन जा मैल समझ जा ओ!मानुष दुखियारे,
अहंकार से कोई ना जीता बड़े-बड़े भी हारे।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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