#भूख
कोई नाम का भूखा जग में,
और कोई दाम का भूखा,
आत्म-प्रशंसा की भूख किसी को,
और कोई है पद का भूखा।
इतना कुछ खा कर भी उनकी,
जिह्वा का बोल है रुखा।
पेट की ज्वाल भी तड़पाती,
और सबको नाच नचाती।
भूख ना देखे छप्पन भोग,
भूख तो खुद ही बड़ा है रोग।
अंतड़ियों से आह निकलती,
हड्डी भी देह से बाहर निकलती।
भूख के मारे वो बेचारे
ले लिया जमाने से है बैर,
सूखी रोटी पर टूट पड़े,
समझ उसे व्यंजन का ढेर।
भूख ना सही गलत पहचाने,
बस पेट की ज्वाल को चले बुझाने।
भूखा बनाती चोर-लुटेरा,
ये कारज करता कोई हाय बेचारा।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
mast hai mam
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