जयपुर से दिल्ली की यात्रा..दिल्ली में स्वागत किया स्वच्छता अभियान को मुँह चिढ़ाते दृश्य ने...दिल्ली देश का दिल..राजधानी,मन सन्न रह गया गंदगी के ढेर देख कर। हादसों को निमन्त्रण देता बड़ा सा टूटा हुआ वृक्ष...झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों के इधर उधर भागते बच्चे..रेलवे ट्रेक के पास सूखते ,हवा से इधर-उधर लहराते कपड़े उफ़ !
क्या ये है स्वच्छ भारत की तस्वीर...ये तो स्वच्छता की ओर एक कदम भी बढ़ा हुआ नहीं लग रहा...वही..गरीब वही गरीबी.. कहाँ रह गई सम्पन्नता ..किसके हिस्से आई है दौलत..क्या इनके हिस्से यही रेलवे ट्रेक हैं...यहीं नित्य क्रियाओं से निवृति....गंदगी फ़ैलाने का कारण...स्वयं के लिए समस्याएँ..स्वयं के परिवार को सदेव बुरी नजरों से बचाने का प्रयास करते लोग..और इनके हित में कार्य करने का दावा करने वाले ..शायद भोग और ऊँचे बोल- बोलकर ही सुख पाते हैं। कहते हैं स्वच्छता अभियान जोरों-शोरों से चल रहा है..हाँ अवश्य चल रहा है, किन्तु कागजों मे कुछ लोगों ने तो जैसे ठान लिया है ,स्वच्छता अभियान पर ही झाड़ू फेरना है..यहाँ आम जन सहभागिता भी.दिखाई नहीं देती कि सरकार का सहयोग करके ही लक्ष्य प्राप्ति हेतु कदम बढ़ाए..।
तस्वीर का दूसरा सकारात्मक पहलू भी नजर आया..जहाँ नित्य-प्रति लाखों लोग गुजरते हैं..मैट्रो स्टेशन. वहाँ स्वच्छता देख कर हृदय गदगद हो उठा..वहाँ के कर्मठ कर्मचारियों की कर्तव्यनिष्ठा के प्रति मन ही मन नतमस्तक हुई।
इतना सब कहने का तात्पर्य यह है कि..जब तक गरीबों को आवास की सुविधा उपलब्ध नहीं होगी, सरकार द्वारा उचित संख्या में सुलभ शौचालयों का निर्माण नहीं करवाया जाएगा,भ्रष्ट लोगों का भंडा नहीं फूटेगा और मुख्य बात जब तक जन सहभागिता नहीं होगी तब तक कागजों में..विज्ञापनों में भारत स्वच्छ अवश्य होगा वास्तविकता में नहीं।
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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