#मुझे शिकायत है
हाँ...मुझे शिकायत है..शिकायत है उस भगवान से जो जब मन चाहे रूठ जाता है....रूठ जाता है उन भक्तों से उस समय भी जब इनको उस अद्भुत शक्ति की..उस हाथ की अति आवश्यकता होती है...उस समय वो मात्र साधारण हाथ नहीं.. साक्षात् ईश्वर का हाथ होता है जो स्वयं ईश्वर सम वो ईश्वर निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर जरूरत मंद पर रखने हेतु मन कर देता है,मना कर देता है..रक्त से लथपथ घायल व्यक्ति का इलाज करने से....छुप जाता है भाग जाता है अपने कर्त्तव्य से मुख मोड़ कर...!
वो भूल जाता है ...कि मैंने सच्चे हृदय से ताउम्र दीन-दुखियों,मृतप्राय और घायल व्यक्तियों की सेवा की शपथ ली थी।
मुझे शिकायत है..कुछ ऐसे डॉक्टर समाज से जो ये भूल जाते कि उन्हें..उनके माता-पिता ने इतनी महँगी शिक्षा किस उद्देश्य से दिलवाई थी...क्या इसलिए कि वो अपनी इस शिक्षा पर अहंकार कर सके...साधारण जन के धन से महँगे जीवन का मूल्य ना जान सके।
कुछ चिकित्सकों को छोड़ दें तो अधिकांश ने तो कर्त्तव्य को व्यवसाय ही बना लिया है..ऐसा पहली बार नहीं हुआ...कई बार देखा है....अपनी जरुरी और गैर जरुरी माँगों को मनवाने के लिए हड़ताल कर सरकार को झुकाने का प्रयास करने का...क्या ये सही मार्ग है..?
कुछ लोगों के बहकावे में आकर ..कुछ सीधे-साधे चिकित्सक भी पेशे को कलंकित करने के रिवाज में शामिल हो रहे हैं।परम मित्रो मानाकि आपकी भी कई माँगें होतीं हैं जो आपकी दृष्टि में उचित है..किन्तु सरकार की दृष्टि में अनुचित...क्या शांतिपूर्वक एस समस्या का हल नहीं निकल सकता...गांधी के शांति प्रयासों से देश आजाद हो गया... अंग्रेजों का भारतीयों पर दमन का क्रूर खेल बंद हो गया तो क्या भारतीय सरकार अंग्रेजी शासन से भी क्रूर है....?
मुझे शिकायत है चिकित्सकों के इस अनुचित व्यवहार से...बनास नदी में लाशें...घायलावस्था में कराहते लोग....पर सरकारी अस्पताल में हालात वही बदतर। अगर उन घायलों में आपके परिजन होते तो भी क्या ये ऐसा ही व्यवहार करते...एक चिकित्सक का पहला धर्म है बीमार, रोगी...घायल का उचार..सेवा की बात तो छोड़ ही दीजिए..!
क्या हड़ताल में शामिल इन चिकित्सकों का ह्रदय इजाजत देता है स्वयं को बीमार से दूर रख पाने का..बिल्कुल नहीं..क्योंकि एक तो मानवीय ह्रदय दूसरा चिकित्सक का...किन्तु इनका अहम इन्हे घायलों की चित्कार..रोगियों की पुकार,बीमारों की आह कर्म करने से रोकता है..मुझे शिकायत है,उन कर्मयोगियों से जो कर्म से ऊँचा अहम को मानते हैं..साथ ही मुझे शिकायत है शासन व्यवस्था से जो इस प्रकार के आंदोलन रोकने में असमर्थ है।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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