#कोहरा
कंप-कंपाती सर्दी में वो,
वो सुबहा सजीली आई ,
कोहरे की साड़ी बाला ने,
अंधियारे खेतों पर लहराई ।
हर डाली पर तितली सा कोहरा,
ओस की तरह छिटकता,
उस 'आँचल' के स्पर्श से पादप,
'अलसा ' अँगड़ाई लेता।
कोहरे से लिपटे खेतों में ,
कोई मस्त मगन हो गाता।
देख के बाली गेहूं की ,
खुशियों से वो भर जाता ।
सर्दी और कोहरे की सुबहा,
जोश ह्रदय में भरती,
साम्राज्य धुंध का फ़ैल रहा,
फसलें नव-जीवन पाती।
#सुनीता बिश्नोलिया
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