#चुनावी वादे
घोषणाओं और झूठे वादों का इंद्रजाल लेकर चुनावी मंच पर आचुके हैं कई बड़े- बड़े कलाकार। कुछ कलाकारों के लिए तो ये कर्म क्षेत्र है किन्तु कुछ तो अपने लोभ के कारण इस मंच को धनोपार्जन का सुगम मंच समझ यहाँ अपनी बुद्धि को झोंक देते हैं। यहीं पर शुरू होता है उनका चालों पर आधारित युद्ध अर्थात भोली भाली जनता की भावनाओं से खेलने का दौर। जब हम स्वयं को एक लोकतांत्रिक देश मानते हैं तो हमारे राजनेता जनता पर धर्म-जाति आदि के नाम पर क्यों अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करते हैं..इस तरह वो उन्हें देश के नाम पर जोड़ते नहीं वरन देश की एकता पर ही कुठाराघात करते हैं ।
जो व्यक्ति स्वयं किसी वर्ग विशेष हेतु विशेष सुविधाओं की भीख मांगता हुआ इस मंच पर आता है वो क्या वास्तव में जनकल्याण की भावना रखता होगा..नहीं बिल्कुल नहीं.. वो मात्र किसी वर्ग-विशेष के भले की चाह से आता है इसमें जनसाधारण के हित का का रत्ती भर -भाव भी नजर नहीं आता।
कुछ तथाकथित नेताओं के अटल किन्तु कुटिल इरादे चुनाव जीतने हेतु इस प्रकार का दांव खेलते हैं कि जनकल्याण करते व्यक्ति भी उसकी चाल में फँस कर वो मार्ग छोड़कर मात्र अपनी कुर्सी बचाने में लग जाते हैं और भूल जाते हैं गरीब की समस्याओं को।
परम पूज्य नेतागण भोली-भाली जनता का विश्वास अर्जित करने हेतु लुभावने वादों की बौछार करते हैं और देश में होने वाले हर गलत कार्य हेतु उत्तरदायी ठहराते हैं दूसरे दल को।
जिस प्रकार मीठे पर मक्खियाँ भिन-भिनाती हैं उसी प्रकार बेचारा 'वोटर' भी मिठाई का वो टुकड़ा बन जाता है जिसे हर 'चटोरा ' खाना चाहता है।
सभी राजनैतिक दल , गरीबी उन्मूलन, किसानों की स्थिति में सुधार , बेरोजगारी हटाने आदि के वचन देकर मात्र स्वयं के लिए स्वर्ण- सिंहासन तैयार करते हैं..स्वर्ण इसलिए क्योंकि पाँच वर्षों में पर्याप्त स्वर्ण का अर्जन किया जा सकता है।
इनकी चाल में फँसकर जनता अपनी आवश्यकताओं के पूरा होने के उसी स्वर्णिम सपने के छलावे में आकर अपनी वर्तमान दयनीय स्थिति को भूल कर अपना अमूल्य मत देकर इन्हें विजयी बनाकर सत्ता में लाती है,किन्तु सत्ता में आते ही जन -प्रतिनिधि विशिष्ट बन जाते हैं।
पाँच साल तक कुर्सी पर जमे रह कर इसी नासमझ जनता के ये प्रतिनिधि अपने वादे भूल जाते हैं।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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