#संवेदना
मानवीय #संवेदनाओं का कुआँ तो,कब का सूख गया ।
फँसकर दिखावे में खुद ही ,मनुष्य खुद से खो गया।
जाड़े में ठिठुरते लोगों को देख कर,संवेदनाएँ जागती हैं..
काम पर जाते बच्चों के देख वही संवेदनाएं दम तोड़ती हैं।
माँ अपने ही बच्चे को झाड़ियों में फेकती है,
जानवर नोचते हैं उसे,ये देख शायद..!!!!
वो संवेदनशील माँ आँसू भी बहाती है।
सड़क पर घायल को देख संवेदनाएँ जाग उठती हैं,
उसे बचाने का प्रयास नहीं करते हम,
भीड़ बन खड़े रहते हैं..वो तड़पता है मदद के लिए,
दम तोड़ने तक उसका...!! हम साथ देते हैं।
वीडियो बनाते हैं..सरकारी मदद ना पहुँचने पर अपना,
आक्रोश जताते हैं।
तोड़-फोड़ आगजनी कर अपनी संवेदनशीलता का
परिचय देते हैं।
'बलात्कार' शब्द सुनकर,#संवेदनाओं का ज्वार उमड़ता है,
हर कोई पीडिता के घर की और निकल पड़ता है।
दुःख जताते,नारे लगाते दोषी को पकड़ने के लिए
हिंसा पर उतर आते हैं।
'पीड़िता' की संवेदनाओं के लुटेरे उसके साथ 'सेल्फी'
खिंचवाकर संवेदनाओं का परिचय देते हैं।
माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज कर,
समाजसेवी बनने की होड़ भी लगती है।
आज #संवेदनाएं 'दिल' में नहीं साहब!!!!
बाजार में बिकती हैं..बाजार में बिकती हैं।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर.
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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