#हम भी इंसान हैं
आँखें फाड़ कर यूँ ना देखो हमें,
हम भी आदम हैं तुम्हारी ही तरह।
देखो साँसें भी चलती हैं हमारी,
भूख से आग भी लगती है,
सर्दी में हड्डियाँ भी गलती हैं।
पर..बहुत अंतर है हमारे बीच,
तुम सच में मनुष्य कहलाते हो।
हम..लावारिस,भिखमंगे,आश्रयहीन!!
तुम्हारे पास चार दिवारी है सिर छिपाने को,
अन्नभंडार है क्षुब्धा मिटाने को।
पर हम तो मजबूत और मजबूर हैं!!!
दो दिन बिन खाए सर्दी की रातें
और चुभन भरे दिन सड़क पर ही काट लेते हैं
भूख लगने पर मिट्टी फाँक लेते हैं,
सर्दी में आकाश ही ओढ़ लेते हैं!!
सरकारें आती जाती हैं,हमें नहीं भूलतीं,
हर किसी की जुबान पर 'हम' '
मजलूमों' का नाम होता है,
संसद में हंगामा और...
सुविधाओं का बखान होता है,
फिर भी ये फुटपाथ ही हमारा बिछौना,
और चद्दर आसमान होता है।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर (राजस्थान)
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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