# वसुधैव कटुम्बकम (गीत)
वसुधा कुटुंब हमारा है और हम हैं वसुधा वासी,
मिलजुल कर जो रहें धरती माँ हम पर स्नेह लुटाती।
छोटे से परिवार में रहते,हिल-मिल जन क्यों सारे,
क्यों लगते हैं कहो वो,एक-दूजे को खुद से प्यारे।
अपना छोटा सा ही घर क्यों लगता स्वर्ग से सुंदर,
क्यों खुशियों के बजते नित,गान भी घर के अन्दर।
वसुधा कुटुंब.......
एक दूजे के कष्ट में क्यों हर मुख पर दुःख छा जाता,
कहो क्यों एक रूठे तो दूजा ,भाई उसे मनात।
वैसे ही माँ वसुधा भी तो,घर है हमारा अपना,
अखंड और सुंदर धरती का,सबका ही हो सपना।
वसुधा कुटुंब...
एक धरा है एक है अंबर,रहते चाहे रहते लोग अनेक,
सीमाओं के नाम से बंट,क्यों बढ़ा आज इतना मतभेद।
मनुज धरा का हर कहता,वसुधा को अपनी माँ,
परिवार एक फिर हुआ स्वत: ही सबकी धरिणी माँ।
वसुधा कुटुंब.....
रक्त का वर्ण भी हर प्राणी का है होता एक सामान,
ना हो कोई तुच्छ नजर में और ना कोई महान।
जाति-पाति का भेद मध्य ना आए बंधु-बांधव के,
वसुधा को कुटुंब समझ,दुःख बाँचे हर मानव के।
वसुधा कुटुंब...
म्यान से ना तलवार निकालें, देश-धर्म के नाम पर,
प्रणों का उत्सर्ग करें हम ,मानवता के नाम पर।
छल कपट और हम वैर भाव का त्यागें तुच्छ विचार,
धरती का हर मनुज बंधु और धरती हो परिवार।
वसुधा कुटुंब......
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
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