#अपराधबोध
अपराध बोध उसी व्यक्ति को होता है जिसने अनजाने में अपराध किया हो। जो व्यक्ति जान बूझकर अपराध करता है वो वो मात्र अपराध बोध का भी दिखवा ही करता है।
सत्य कह रही हूँ...आप ही बताइए क्या आपने कोई ऐसा व्यक्ति देखा है जो अनजाने किसी जानवर को मारता है और फिर कहता है कि मर गया इसलिए इसे खा ही लेता हूँ..वो हम पर और पर्यावरण पर अहसान जताता है कि पर्यावरण दूषित ना हो इसलिए खा लेना ही ठीक है।
घर,परिवार,पड़ोस,समाज,गाँव,शहर ,देश आदि के मध्य जमीन के पीछे लड़ाई अथवा युद्ध हो जाता है..अपराधबोध के नाम पर मात्र अफ़सोस काश सामने वाला मेरी वाणी को हवा ना देता तो लड़ाई और युद्ध होने से बच जाता..किन्तु युद्ध तो हो गया जो विनाश होना था हो गया..बिना सोचे समझे आवेश में इतना बड़ा कदम नहीं उठाया जाता।
क्षमा कीजिएअगर एक बलात्कारी,व्यभिचारी कुकृत्य करने के बाद अपराध बोध से ग्रसित होता है तो उसका अपराध अक्षम्य है,क्योंकि काम की ज्वाला उसके अपने हृदय में उत्पन्न हुईं थी ना कि किसी ने उकसाया,अत: ये महाअपराध है..अपराधबोध करने पर क्षमा का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
धर्मों के नाम पर दंगे,जाति के नाम पर अनुचित मांगे तोड़-फोड़ आगजनी ये जान बुझकर किए गए अपराध हैं..अंतत:अपराधी को अपराधबोध नहीं होता वरन वो वृहद महत्त्वकांक्षाओं के कारण अपने अपराध को अधिकार मानकर दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करता है।
गुरु दक्षिणा के रूप में शोषण..जबरदस्ती..ब्लेकमेलिंग अर्थात निरीह को जाल में फांस कर उसका जब तक बस चले शोषण करते रहें..और जब पकड़े जाएँ तो अपराधबोध का ढोंग करके बचने का प्रयास किया जाए...क्या यही है अपराधबोध..किसान का गरीब का लाचार का शोषण कर क्षमा मंगू जाए.. सरे आम कानून की धज्जियां उड़ा कर माफ़ी मांगी जाए...नहीं मेरी नजर में ये अपराधबोध नहीं वरन आगे आपराध करने हेतु सुगम मार्ग है।
मेरी दृष्टि में लाचार..भूखे व्यक्ति द्वारा रोटी चुराना...मज़बूरी में की गई चोरी..झूठ आदि..आदि..और भी बहुत कुछ कहना चाहती हूँ..किन्तु समयाभाव के कारण मजबूर हूँ...पूरा सत्य उजागर ना कर पाने के कारण अपराधबोध से ग्रसित..मैं
#सुनीता बुश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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