#रंग
नीले-पीले,लाल-गुलाबी,जित देखो उत रंग हैं बिखरे,
फाग का रंग चढ़ा धरती पर,रंग ही रंग हर तरफ हैं छितरे।
उड़ते रंगों में लिपटी हुई ,धरती देखो बनी दुल्हनिया,
फाग की मस्ती मुख पे लिए,बहु रंगों की ओढ़ चुनरिया,
मोसम है मस्ताना और वात्सल्य लुटाती वसुधा,
झूम रहा हर पल्लव संग मन में भर कर उत्साह।
पुकार रहा मन आज मैं हर फूल को बाँहों में भर लूँ,
ये रंग भरूँ हर जीवन में हर रंग को दिल में बसा लूँ।
अलंकार अलबेले ये रंग,रूप धरा का और सँवारे,
रंग बिरंगी पुष्प-लताएँ , कहीं खिले ये टेसू प्यारे,
उड़ते हुए रंग कितने प्यारे,फाग की मस्ती में बहके सारे,
धरती पर हैं अजब नज़ारे,आँखों को भाते हैं सारे।
धरती का हर कोना भरा है,रंगों से लिपटी पूरी धरा है,
बचा न कोने खाली कोना,रंगों ने न की शरारत जहाँ है।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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