#धरा
धैर्य धरा का टूट रहा है,देख हमारे धंधे,
स्वयं नष्ट करते वसुधा,तैयार कर रहे फंदे।
माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला,
हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला।
शहरों का विस्तार हुआ और सिमट गए हैं ग्राम,
कंक्रीट के जंगल कहो धरा पे,क्यों हो गए हैं आम।
आभूषण वृक्षों के माँ के,मानव ना तुम नोचो,
नूतन वृक्ष लगा धरती को ,स्नेह-सुधा से सींचो।
धरती का क्यों ह्रदय ,चीरते संसाधन पाने को,
क्यों पर्वत का अस्तित्व मिटाते बन कर के अनजाने।
देखो माँ की कृश काया,आँखों में अश्रु का सागर,
फिर भी दे उपहार मनुज को,भरती लालच का गागर।
पार कर गई पराकाष्ठा गर धरती के सहने की,
अश्रु धार से नष्ट करेगी,जाति मनुज अभिमानी की।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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