#क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है
अरस्तू ने कहा था नारी की उन्नति तथा अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर करती है। बर्नाड शा का कहना है की किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है,यह उसकी माता को देखकर साफ़ बताया जा सकता है। सुशिक्षित नारी समाज में फैले दुराचार,रुढिवाद और अनाचार को नष्ट करने में सहायक हो सकती है,और इसका प्रमाण हम प्राचीन कल से ही जीजाबाई..रत्नावली आदि के रूप में प्राप्त कर चुके हैं।
किन्तु प्रश्न यह है कि क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है...अवश्य बढ़ी है। हालांकि इसका प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है।
प्राचीन काल में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही शिक्षा दी जाती थी.....गार्गी,लीलावती,अनुसूया आदि विदुषियों को कौन नहीं जानता। आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी ने जगत्गुरु शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में बुरी तरह हराया।
किन्तु समय -समय पर विदेशी आक्रमण होते रहने के कारण हमारे देश का शैक्षणिक विकास रुक गया... महिलाओं को घरों में कैद होकर अशिक्षा के घूंघट में विवश होकर रहना पड़ा।
समाज के कुछ पुरातन पंथियों की स्त्री-शिक्षा की विरोधी सोच के कारण....स्त्री शिक्षा में पिछड़ गई...उन्हें वंचित रखा जाने लगा शिक्षा के अधिकार से,आज भी कई स्थानों पर अक्षर-ज्ञान,स्कूली शिक्षा,तकनीकी शिक्षा आदि में महिलाएँ बहुत पिछड़ी हुई हैं।
मानकि भारत में आज भी महिला-शिक्षा की स्थति संतोषजनक नहीं है...किन्तु ये स्थिति आशाजनक अवश्य है।
सरकार और समाज के साझा प्रयासों के फलस्वरूप आज नारी पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलने की होड़ में डॉक्टर,पायलट,इंजीनियर,सेना आदि सेवाओं में कार्यरत हैं।
आज महिलाओं को सरकार एवं समाज द्वारा विभिन्न राज्यों में मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है,लडकियों का पढाई में लड़कों की अपेक्षा प्रदर्शन भी अच्छा ही रहता है जो कि अन्य महिलाओं एवं लड़कियों में पढ़ने हेतु जोश का संचार करता है,इससे प्रभावित होकर अन्य क्षेत्रों से भी महिलाएँ पढ़ने हेतु आगे आती हैं और महिला साक्षरता का प्रतिशत दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें