#जमाना बदल गया है
आज बदले जमाने के दस्तूर सारे,
ना फूलों की परवाह मसले जाते हैं सारे।
ये बदली हवा है , ये बदली फिजा है,
न परवाह किसी को,खुद के सिवा है।
हवा का वो चलना,मन में फूलों का खिलना,
आज भूले सभी हैं,एक दूजे से मिलना।
देशभक्ति की तब एक आंधी चली थी,
खुद की भक्ति की अब तो हवा बह रही है।
प्यार की मन में सुरभि हवा ही थी भरती,
आज खोई है प्यारी सी वो अनुभूति।
आज काला धुँआ भी हवा में समाया ,
मन की कलुषता का मैला हवा में उड़ा या।
हवा से सिहर उठता है ,मन ये माना,
फिर हवा को विषैला,क्यों करता जमाना।
तूफान बनके हवा जब है बहती,
तोड़ अभिमान सबका रूप अपना दिखाती।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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