#आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
हिंदी साहित्य के जाने-माने आलोचक एवं निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दूबे के छपरा' नामक गांव में सन 1907 में हुआ था इनके पिता का नाम अनमोल दूबे तथा माता का नाम श्रीमती ज्योति कली था।
इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उच्च शिक्षा हेतु बनारस चले गए वहाँ उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिष शास्त्र तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि हासिल की। इसके उपरांत वे शांतिनिकेतन में अध्यापन कार्य करने लगे रविंद्र नाथ टैगोर के सानिध्य में आकर उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया काशी हिंदू विश्वविद्यालय,पंजाब विश्वविद्यालय, शांति निकेतन में हिंदी विभाग के प्रमुख रहे उनका देहावसान सन 1979 में हो गया था।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने व्यक्ति व्यंजक निबंधकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की निबंध संकलनों में अशोक के फूल, विचार प्रवाह, कल्पलता, कोटर ,आदि हैं इनमें अधिकांश निबंध विचारात्मक और आत्मपरक है तथा इनकी मानवतावादी दृष्टि लोकमंगलकारी स्तर पर उभरी है।द्विवेदी जी के निबंधों में विषय का विश्लेषण सरल और युक्ति युक्त होते हुए भाषा में परिलक्षित होती है निबंध में बौद्धिक चिंतन और शास्त्रीय विवेचन मिलता हैं। द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध और परिमार्जित हिंदी है,जिसमें संस्कृत शब्दावली का तत्सम रूप प्रधान है।
द्विवेदी जी ने 'शिरीष के फूल' ललित निबंध में शिरीष के फूल के सौंदर्य का वर्णन करते हुए सामाजिक विषयों पर रोचक टिप्पणी की है। द्विवेदी जी कहते हैं कि जिस प्रकार शिरीष के पुराने फल नए फलों द्वारा धक्का मारे बिना नहीं छोड़ते यही हाल हमारे देश के नेताओं का है वो तब तक अपनी कुर्सी से चिपके रहते हैं जब तक कि उन्हें धक्का मार कर चलता नहीं कर दिया जाता।
द्विवेदी जी कहते हैं कि कितना भी संघर्ष और कोलाहल हो मनुष्य को अपनी सरलता-सरसता और अपना उत्साह बचा कर रखना चाहिए । उसी प्रकार मनुष्य को चारों ओर फैले भ्रष्टाचार अत्याचार मारकाट लूटपाट व खून खच्चर के बीच भी निराश नहीं होना चाहिए उन्हें उन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्थिर और शांत रहना चाहिए।
द्विवेदी जी ने पशु पक्षियों के प्रति मानवीय संवेदनाओं को भी निबंधों में लिखा।
अपने आलोचनात्मक साहित्य विषय निबंध में आचार्य द्विवेदी ने आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है शैली के अंतर्गत उन्होंने सर्वप्रथम अपने सिद्धांत का प्रतिपादन किया तत्पश्चात उसकी आलोचना की शैली के प्रयोग में द्विवेदी जी के विवाद और विरोध से दूर रहे परिणाम स्वरुप उनकी शैली अधिक स्पष्ट और प्रभावी बन पड़ी।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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