# धैर्य
सुख और दुःख सहने की,
कला कहाती है संयम,
प्रतिकूल परिस्थिति में भी
अविचल रहे जिसका मन।
धरे धैर्य धरे जो बाधाओं में,
वो निडर न घबराए,
हर मुश्किल से धैर्य से,
वो धैर्यवान कहलाए।
पराकाष्ठ सहनशक्ति की ,
पार वही कर पाता है,
धैर्य धरा के जैसा जिसके
दिल में रहा करता है।
धैर्य सिखाता हँसकर के
सुख-दुःख में संयम रखना,
धैर्य सिखाता क्रोध में भी
स्वयं नियंत्रित रहना।
पर्वत से सीखें धैर्य सभी,
वो अडिग खड़ा रहता है,
हर रोज वो लड़ता तूफानों से,
पर धैर्य नहीं तजता है।
माँ का देखो धैर्य नहीं माँ,
कभी फर्ज से पीछे हटती,
रात-रात भर जगती और
पूत को कर बलिदान है माँ इतराती।
उस वीर सिपाही के धीरज की
मत लेना कभी परीक्षा,
अपनों को छोड़ अपनों की वो
ज्यों संत हो करता रक्षा।
साथ समय के पकता फल है,
तरुवर भी यही सिखाता,
धैर्य का फल मीठा होता है,
सीख हमें हमें तरुवर देता
चींटी से सीखो धैर्य वो,
कितनी बार राह में गिरती,
धीरज का परिणाम,
वो मंजिल को फिर गले लगाती।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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