#हास्यास्पद 'आफत
सरकारी बाबू हाय!बिचारा,ये बैठा आफत का मारा,
चाय मिली ना पेपर इसको,ऑफिस में क्या करे बिचार।
घिसी पिटी फाइल को देखा, आफत समझ रद्दी में फैंका।
चपरासी भी कम नहीं, इसको भी 'आफत 'कम नहीं
बाबू के दुःख का गम नहीं, मोबाइल छोड़ते हम नहीं
रद्दी से फाइल उठाता है,बाबू को आँख दिखाता है।
जब 'बोस ' आफत में आता है,नारद ये बन जाता है
काम ना होने का जिम्मा,बाबू पर सरकाता है।
आफत है भई आफत है, सबको सबसे आफत है।
पति को आफत पत्नी से, क्यों ब्यूटी पार्लर जाती है।
मैं जब कहता सजने को ,तो आफत में आ जाती है
मिस वर्ड की दौड़ में आगे ज्यों,बन 'किटी पार्टी जाती है।
खेल तम्बोला घर आकर,आर्डर खाने बाहर से देती है।
आफत है भाई आफत है सबको सबसे आफत है।
आफत का मारा एक बिचारा, मर ना जाए ये कुँवारा,
हाय! नौकरी मिली ना इसको, कैसे होगी इसकी शादी
भटक-भटक कर तलुए घिस गए,उम्र बीत गई आधी।
आफत है भई आफत है सबको सबसे आफत है..
बहु को सास लगे आफत सी, कर न पाती बो मर्जी की,
सास जो बोले ऊँचे बोल, बहु खोलती सारी पोल,
अब तो बाबू वापस भगा, आफत में फँस गया अभागा
आफत है भाई आफत है ,सबको सबसे आफत है।
आफत है भई.......
इधर भो आफत उधर भी आफत।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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