#यात्रा संस्मरण
बात लगभग 5-6 वर्ष पूर्व की है,हम दोनों बच्चों के साथ दिल्ली से किसी शादी में शामिल होकर वापस जयपुर लौट रहे थे।
पूरे रास्ते आराम से आ गए किन्तु अजीतगढ़ नामक स्थान के आस पास पहुँचे तो वहाँ तेज बारिश के कारण जगह-जगह पेड़ों की छोटी-छोटी डालियाँ टूट कर गिरी हुई ,8-9 बजे का समय बिलकुल अँधेरा।
अब पतिदेव धीरे-धीरे गाड़ी चलाने लगे,दोनों बच्चे लंबे सफर के कारण गाडी में ही सो गए थे लेकिन सफर लंबा होने के कारण उन्हें टॉयलेट आने लगी,दोनों ही टॉयलेट जाने के लिए बार-बार कहने लगे। बारिश जब थोड़ी हलकी लगी तो हमने गाडी रोक कर बच्चों को उतारा।अचानक एक गाडी पास से गुजरी उसमें से एक व्यक्ति ने वहाँ रुकने से मन करके आगे जाने को कहा और वो गाड़ी आगे बढ़ा ले गया ..तभी दूसरी..तीसरी गाड़ी वालों ने भी आगे बढ़ने का इशारा किया। हमें कुछ समझ नहीं आया और वहाँ बच्चों को टायलेट करवाकर आगे बढ़ गए।
अब अँधेरे के कारण जो रास्ता पकड़ा वो बिल्कुल अंजान-सूनसान..रास्ते में कोई गाड़ी नहीं कोई..व्यक्ति नहीं हम रास्ता भटक चुके थे। 5-6 किलोमीटर चलने के बाद कुछ ट्रक खड़े दिखाई दिए..पतिदेव ने पहले उनसे रास्ता पूछना चाहा..पर मेरे मना करने पर वहाँ नहीं रुके और आगे बढ़ते रहे। लगभग और 5 किलोमीटर चलने के बाद एक टोल बूथ आया तो जान में जान आई।हमने वहाँ पर्ची कटवा ली..पर टोल कर्मचारियों ने हमें कहा आप जयपुर की तरफ नहीं वरन शाहपुरा की तरफ जा रहे हैं...आप लोग लगभग 13-14 किलोमीटर गलत आ गए हैं। जब हमने उन्हें बताया कि एक जगह गाड़ी रोकी थी तो उनहोंने कुछ नहीं कहा वरन कहा जिस रास्ते आये हैं उसी रास्ते वापस जाएँ और जहाँ टॉयलेट के लिए गाड़ी रोकी वहाँ से 1 किलोमीटर आगे जाकर सीधे हाथ जायें।हाँ रास्ते में किसी से कुछ पूछने की जरुरत नहीं..किसी से भी। टोल वाले भाई साहब की सलाह मानकर हम वापस उसी रास्ते आ गए और जयपुर की सही राह पकड़ली और एक-डेढ़ घंटे बाद जयपुर यानि अपने घर पहुँच गए।
आधे -एक घंटे बाद बच्चों के सो जाने के बाद पतिदेव ने मुझसे पूछा क्या तुम्हे पता है हम बच्चों को लेकर कहाँ रुके थे और वो गाड़ी वाले हमें आगे जाने को क्यों कह रहे थे....मैंने कहा हाँ मैंने वापस आते समय वो जगह दुबारा देखी, वो शमशान घाट था और जहाँ बच्चों जो टॉयलेट करवाया वहाँ किसी की समाधि थी...ये सुनकर पतिदेव ने कहा हाँ मैंने भी जाते समय ही वहाँ पास ही मंदिर और पानी की नलें वगेरह देखी और समझ आ गया था सोचा तुम और बच्चे डर जाओगे इसलिए नहीं बताया..और तुम भी बड़ी समझदार निकली।
जैसे -तैसे वो यात्रा तो पूरी हो गई किन्तु आज भी उसकी यादें और वो सारे दृश्य आँखों के आगे आ जाते हैं और टोल वाले भाई साहब के प्रति हृदय में कृतज्ञता के भाव आ जाते हैं कि उसे सब पता होने पर भी उसने हमें शमशान में रुकने वाली बात नहीं बताई और रास्ते में ट्रक वालों से या किसी से रास्ता पूछने हेतु सख्त मना करके सही रास्ता दिखाया। लेकिन अब हमने रास्ते में ना रुकने की कसम खा ली थी....
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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