# "राष्ट्रकवि दिनकर"
सूर्य से ऊर्जा लेकर ,
जन्मे सिमरिया में दिनकर,
मन में देश साँसों में देश,
कविता बन प्रेम झलकता था।
बेहाल देख घर-परिवार को भी,
वो जरा नहीं मचलता था।
संस्कृत ,इतिहास और दर्शन
के वो बड़े खिलाडी थे,
हिंदी की धाक भी अपनी दिखा,
बतलाया वो नहीं अनाड़ी थे।
रश्मिरथी हर कुरुक्षेत्र संग
हर विधा में हाथ दिखाया था
संस्कृति का परिचय भी दिया,
रस वीर हर तरफ बिखराया था।
ज्यों दिनकर का उजियारा हरता,
अंधकार धरती का,
कवि"दिनकर" ने भी यज्ञ किया,
कलम से राष्ट्रभक्ति का।
कलम से उनकी शोले से,
शब्द सदा झरते थे,
अंगारों पर चलने का देश से,
आह्वान किया करते थे।
इंसान तो क्या भगवान को भी,
बदलने की बात किया करते थे,
ओजस्वी कविता लिख,
जन में उत्साह भरा करते थे।
गलत का समर्थन ना करते,
सरकार से भी भिड़ जाते थे,
अपना हक़ लेने को लड़ना,
लोगों को सिखाया करते थे।
राष्ट्रभक्ति ही जीवन की उनके,
सच्ची और खरी कमाई थी,
कलम ने उनकी साथ में चल के,
हर वचन और कसम निभाई थी।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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