#मिट्टी
न सुंदर मैं स्वर्ण भस्म सी
स्वर्ण कलश सी ना मजबूत,
मैं कुम्हार की कच्ची मिट्टी,
लेती वो जो देता स्वरूप।
कूट-कूट के मल-मल के,
मैं चाक चढ़ाई जाती हूँ,
जल के छींटे पाकर के,
कोमल मैं बन जाती हूँ।
दिया बनूँ मैं हरण करूँ,
अंधकार इस जग का,
बनूँ खिलौना,मन बहलाऊँ
परस पा के हाथों का।
जलूँ आग में,तपूँ रात दिन
सहती कठिन परीक्षा,
बाधाओं से लड़ने की
गुरु-कुम्भकर देता शिक्षा।
जल को निर्मल-शीतल कर दूँ,
वो मन्त्र फ़ूकता ऐसा,
मैं कच्ची मिट्टी कुम्हार की,
तृप्त कर्रूँ मन प्यासा।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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