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दोहे और कविता

दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता आजाद होकर वो,रहता फिर भी सलामत है। किसी के तोड़ के सपने,खुद की हसरत करें पूरी, झूठ की ओढ़ के चादर,दिखाते क्यों शराफत है। करते ईमान का सौदा, हकीकत क्यों न पहचाने, हवा के ज़ोर से ढहती,मानो कच्ची इमारत है। सड़क तक आ गए बच्चे,हुकुमत है कहाँ सोई कहो बच्चों के जीवन पर,हो रही क्यों सियासत है। #सुनीता बिश्नोलिया #जख्म कई जख्म तन पर लगें, गर एक लगे मन माय, तन का सूखे जख्म पर, मन को चैन ना आए। रक्त रिसे आँसू बहे, मुँह से निकले हाय, जख्म जिगर पर हो अगर खुशियाँ ना मन भाय। देश बंटा दिल भी बंटे, और लुटे कई परिवार, जख्म बना नासूर आज भी होती है तकरार। बम और गोले दाग के, मचा रहे उत्पात, नया घाव देते हैं नित, अब ना होता बर्दाश्त। धरती माता को भी नित देते हम हैं कष्ट, घाव वसुधा के भरें, ना रहें स्वयं में मस्त। तन के छुपा कर बैठ गई, जो दिए दुष्ट ने जख्म, आँखों से बन लहू बहे, मन रोए निकले दम। मन में गहरा घाव है, नहीं छुपाया जाय, तन के घाव 'पट' में छिपे, मन अविरल रोता जाय.... #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर # राम राम नाम के दीप से,जग में हुआ प्रकाश, अँधियारा जग का हरे,चंदा ज्यों आकाश। रहो विनत सम राम से ,सदा झुकाना शीश, मात-पिता के चरण ही,देंगे हर आशीष। राम नाम धन पाय के,मैं तो हुई निहाल, मनवा लागा राम में,थोथा जी जंजाल। दया नहीं है राम सी,जग के अंतर माय, पीड़ित जन को देख के,अपने रस्ते जाय। राम बनो रावण नहीं,तज दो सब अभिमान, अहं करावे नाश ही , विनय देत सम्मान। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

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