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जयशंकर प्रसाद

#जयशंकर प्रसाद कामायनी,कानन ,कुसुम,करुणालय, चित्राधार, प्रेम पथिक,आँसू लहर, महाकाव्य सृजनहार छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। बचपन में पिता के मित्रों से मिला साहित्य के प्रति लगाव व् पिता के साथ पुरी भ्रमण पर किये गए प्रकृति दर्शन और माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् व्यापार के साथ-साथ किये गए स्वाध्याय ने प्रसाद में एक प्रतिभा को तराशा, जिस प्रतिभा ने संसार में महाकवि के रूप में पहचान बनाई। अठारह सो नवासी-काशी, एक भक्त के घर में दीप जला, पितामह के प्रेम के घृत से, जग-मग दीपक खूब फला। पिता व्यापारी तम्बाकू के, पर गहरे विद्या प्रेमी, ईश्वर के थे परम भक्त, पिता पूजा के नित-नेमी। विद्वानों का रात दिन, घर में रहता जमघट, उनके ही प्रभाव से, कहलाये वो जयशंकर। तेरह वर्ष की उम्र में , पुरी दर्शन कर लीन्हा प्राकृतिक सौन्दर्य ने, तब ह्रदय में घर था कीन्हा। प्रकृति की छटा उंडेली, कामायनी में सारी, 'श्रद्धा' के तन पर वसन, पुष्पों के थे भारी। कच्ची उम्र में मात-तात, गए ईश्वर के द्वार, स्वाध्यायी 'प्रसाद' ने फिर भी न मानी हार। सभ्यता-संस्कृति के पढ़े, कई कोष और वेद-पुराण, महाकाव्यों का अध्ययन कर, बने वो कवि महान। तेरह नाटक, तीन लिखे , 'शंकर' ने उपन्यास, सौ के लगभग कहानी लिख कर, साहित्य का समृद्ध किया इतिहास। छायावादी काव्य के कवि प्रणेता 'प्रसाद, पंत-निराला,महादेवी को, लेकर वो चले सदा साथ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

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