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यात्रा-संस्मरण

#यात्रा-संस्मरण मई 1995 शादी के 20 दिन बाद पतिदेव के साथ पटना जाने के लिए दिल्ली पहुँची।पहली बार घरवालों से इतनी दूर और इतने लम्बे सफ़र पर जा रही थी सो थोड़ी घबराहट भी थी। साथ था बहुत सार सामान...एक बैग तो पूरा मेरी कॉलेज की किताबों का ही था। अब मैंने अपनी इच्छा से ही प्राइवेट पढ़ने का निर्णय किया था..क्योंकि अब पतिदेव के साथ जो रहना था। खैर स्टेशन तक पतिदेव के परम मित्र और मेरे भाई साथ आए थे। ट्रेन थोड़ी लेट थी ये सब बातें करने लगे थे लगभग घंटे भर बाद गाड़ी आ गई और हम रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद पतिदेव ने देखा कि इनका पर्स नहीं है..यानि जेब कट चुकी थी। पहले तो इन्होंने मुझे नहीं बताया पर बाद में बोले कि शायद टिकिट भी पर्स में ही थी। तो मैंने बताया कि टिकिट मेरे पास है जोकि इनके मित्र ने बनवाए थे और मुझे दिए और मैंने अपने पर्स में रख लिए थे। मुझे लगा अब इनके पास पैसे नहीं होंगे पर्स के साथ निकल गए सो मैंने कहा आप चिंता न करें मेरे पास खूब पैसे हैं मुँह-दिखाई और जो माँ-पापा ने दिए। मेरे इतना कहते ही ये मुस्काए और बोले वाह बड़ी समझदार हो लेकिन ये पैसे तुम्हारे हैं तुम जैसे चाहो खर्च करना। मैं छह वर्षों से पटना आ-जा रहा हूँ इसलिए मुझे इन सब की आदत है,मेरे पर्स में उतने ही रूपये होते हैं जितने रास्ते में जरुरी हो..बाकि पैसे अन्य स्थान पर होते हैं। मुझे अपनी समझदारी पर शर्म ही आई और हँसी भी। इतनी देर तक हम आपसी बातों में खोये थे अब अचानक नजर सामने बैठे परिवार पर पड़ी। सब रोये-रोये दिख रहे थे ,सास-बहु दोनों के ही कानों पे पट्टी ,कपड़ों पर सूखा हुआ खून देखकर मैं डर गई। पता चला कि रास्ते में इस गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई थी और ये सास-बहू भी इसका शिकार बनी। मैं तो डर और घबराहट से काँपने लगी और भगवान से शांति से पटना पहुँचाने की प्रार्थना करने लगी। जैसे-तैसे हम पटना पहुँचे पर दोनों ही घटनाएँ मेरे पहले सफर की बुरी यादों के रूप में मेरे जहन में बस गईं कभी न भूल पाने के लिए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

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