#-यज्ञ
मन पावन मन की इच्छाएँ,
मन के धुलते कपट-क्लेश,
'यज्ञ' में जल जाते मानव के,
पाप और आपस के द्वेष।
मात-तात सा आराधक कोई,
नहीं उपासक धरती पर,
अखंड 'यज्ञ' करते हित-संतति,
हवन की भाँति खुद जलकर।
वैराग्य वृत्ति वाला परिमल,
वो छोड़ पुष्प उत्सुक होकर,
'यज्ञ' देशहित करते नित,
सीमा पर लाल खड़े होकर।
आत्मविस्मृत-आत्मतेज से,
भुजबल से आलौकिक होकर,
'यज्ञ' वो करते बोझा ढोकर ,
धूप में जल दिनभर खपकर।
उदात्त-ह्रदय सरित्पति सम,
स्निग्ध-शांत सुंदर वाणी,
शिक्षा 'यज्ञ' में डाल रहे हैं,
समिधाएँ गुरुवर पाणि।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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