#शिक्षा ये कथा है जयपुर शहर में रहने वाले सोने-चाँदी के बहुत बड़े व्यापारी संपतलाल जी की। उनके व्यापार में तीन मित्रों की हिस्सेदारी थी।वो थोड़ा कम पढ़े लिखे थे इसलिए रोजाना का हिसाब मित्र ही कर लिया करते।दोनों मित्र भी बहुत ही ईमानदार इसलिए ईश्वर ने उन्हें धन-दौलत से लेकर दुनिया के हर सुख प्रदान किये..नहीं दिया था तो बस संतान सुख। जो कोई जिस मंदिर जाने की कहता वो संतान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उस मंदिर में पहुँच जाते। विवाह के आठ-दस वर्ष बाद ईश्वर ने उनकी झोली में डाली प्यारी सी बच्ची।अपनी पत्नी को ही अपना भाग्य समझने वाले संपत जी पुत्री जन्म के बाद तो माँ बेटी का विशेष ध्यान रखते। वो बेटी प्रिया से इतना अधिक प्रेम करते थे कि कई बार तो उसकी जिद के कारण दुकान पर नहीं जाते और इस कारण नुकसान भी हो जाता। संपत जी बड़े ही दयालु व्यक्ति थे वे अपने यहाँ काम करने वाले अधिकांशत: कर्मचारियों के बच्चों को बहुत प्रेम करते थे और जरूरत के अनुसार उनकी आर्थिक मदद भी कर दिया करते थे। उनके घर में काम करने वाला किसन अपनी पत्नी व बेटी के साथ घर के पीछे बने एक कमरे में रहता था।वो दोनों पति-पत्नी ही सेठजी के यहाँ मनोयोग से काम करते। उनकी भी एक बेटी थी रजनी जिसकी उम्र लगभग सेठ जी की बिटिया के बराबर सी ही थी।वो सेठजी की बिटिया के साथ ही खेलती और उसी के साथ विद्यालय भी जाती। कभी-सेठजी या उनकी बेटी के मन में ये विचार नहीं आया किउनके घर काम करने वाले गरीब की बेटी उसी स्कूल और उसी कक्षा में पढ़ती है जहाँ राजकुमारी की तरह पलती उनकी बेटी भी पढ़ती है। दोनों ही पढने में अच्छी पर प्रिया थोड़ी सी आलसी थी । वो हर कभी अपना गृहकार्य करना भूल जाती और अंतिम समय पर रजनी पूरा कर दिया करती।कई बार अध्यापिका उसकी कॉपी में नोट भी डालती प्रिया को माँ बहुत समझाती पर वो पिता के लाड़-प्यार और उनके द्वारा पक्ष लिए जाने पर काम नहीं करती बल्कि उस दिन विद्यालय ही नहीं जाती। एक दिन किसी बात पर गुस्सा हो कर अध्यापिका ने प्रिया के गाल पर थप्पड़ लगा दी,जिससे उसके नाक में खून आ गया। घर आने पर सम्पत जी को सारी बात पता चली तो उनका खून खौल उठा। वो दूसरे दिन स्कूल गए वहाँ काफी बहस की और अंत में बेटी को स्कूल से निकाल लिया। इससे उनकी पत्नी बहुत नाराज हुई किसन ने भी सेठजी को समझाने की कोशिश की पर सब व्यर्थ। सेठजी ने बिटिया के पढने की व्यवस्था घर पर ही कर दी। समय बीतता गया रजनी और प्रिया दोनों बहुत ही अच्छी सहेलियाँ बन गई थी। प्रिया रजनी को स्कूल जाते देखती तो उसका भी मन करता कि वो भी स्कूल जाए। वो अपने पिता को जब स्कूल जाने की बात कहती तो वो डर जाते कहीं फिर कोई बेटी पर हाथ न उठा दे। इसी डर से वो उसे स्कूल नहीं भेजते और अधिकांशत: खुद घर में ही रहते बस बीच में थोड़ी बहुत देर के लिए दुकान जाते। बेटी के अठारह वर्ष की होते ही उन्होंने बहुत ही अच्छा घर-वर देखकर उसकी शादी कर दी। लड़का विदेश में नौकरी करता था किन्तु सेठजी की शर्त थी कि वो बेटी को विदेश नहीं भेजेंगे लड़के को भारत में ही नौकरी करनी होगी तथा बाद में उनकी भी व्यापार में मदद करनी होगी। लड़के वालों ने सेठजी की बात मानली। शादी के दो-तीन दिन गुजरने के बाद लड़के ने अपने माता-पिता से कहा कि " ये लड़की मेरे स्तर की नहीं है, मैं इतना पढ़ा-लिखा और इसको तो कुछ भी नहीं आता, कोई डिग्री नहीं है इसके पास,कोई पूछे तो मैं क्या बताऊँ कि हाँ बस पढना लिखना आता है ज्यादा कुछ नहीं"।बेटे की बात सुनकर उसके माता-पिता ने उसे बहुत समझाया कि बहु संस्कारी और सुशील है,पर वो नहीं माना बस रोज माता-पिता को कोसता कि "धन के लालच में आप लोगों ने मुझे धोखा दिया है।" प्रिया ये सब रोज सुनती और रोज अंदर ही अंदर मरती । लगभग पंद्रह दिनों बाद उसका पति एक पत्र छोड़ कर घर से निकल गया कि वो ये शादी तोड़ता है और वापस विदेश जा रहा है। प्रिया बहुत दुखी हुई उसके ससुर जी उसे उसके घर के बाहर तक छोड़ गए। संपत जी को ये जानकर बहुत धक्का लगा वो कहने लगे " वो ऐसा कर सकता है,मैं पुलिस को रपट लिखवाऊँगा" कहते-कहते उनकी साँस उखड़ने लगी,उनको हृदयाघात आया और वहीं उनके प्राण पझेरू उड़ गए।अब तो उन माँ बेटी पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। अभी बारह दिन भी नहीं हुए थे कि सेठजी के दोनों मित्र कुछ कागजों पर सेठानी के हस्ताक्षर करवाने लाए,और कुछ कागज वो उनको देने। हालांकि संपत जी दुकान कम जाते पर हिसाब के पक्के थे।वो जब दुकान के सामान,लेन-देन आदि का हिसाब करते तो किसन की बेटी रजनी को पास बिठाया करते थे और उससे पूरा लेख-जोखा करवाते इसलिए रजनी को उनके लेनदारों -देनदारों,लाभ-हानि की पूरी जानकारी थी। जब सेठजी के हिस्सेदार मित्र सेठानी से कागजातों पर हस्ताक्षर करवाने लगे तो रजनी ने कागज पहले उसे दिखाने के लिए कहा। दोनों मित्र ठिठक गए किन्तु रजनी की जिद के कारण उनकी एक न चली।रजनी ने उनकी बेईमानी पकड़ ली और जो कि व्यापार में घटा और मकान गिरवी रखने तथा दुकान से सेठजी की हिस्सेदारी समाप्ति की घोषणा के थे। रजनी ने बैठक में आए सभी लोगों के सामने उनकी पोल खोल दी लोगों ने पुलिस को बुलाकर उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। अपना और अपने घर का ये हाल देखकर प्रिया ने फिर पढ़ने की ठानी घर से ही पढ़ते-पढ़ते उसने स्नातक तक पढाई करली और पिताजी का व्यापार संभालने के साथ ही वो लोगों में शिक्षा की अलख भी जगा रही है। #सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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