#काफिया-आम
#रदीफ- बोलिये
लगता है आज इंसा का,क्यों दाम बोलिये,
चाहते हैं क्यों हर बार सब,ईनाम बोलिये।
बोली लगाते फिर रहे, इंसान हर तरफ,
क्या हो रहा है देश का,अंजाम बोलिये।
बाड़े में बंद ज्यों भेड़ हों,ये हाल हर तरफ,
मतलब परस्त जहान का, ये काम बोलिये।
खुदगर्ज हर कोई है ,ज़माने में हर तरफ,
चाहता है आज हर कोई,सलाम बोलिये।
बदली है आज चाल भी,सबकी हर तरफ,
मंजिल की न खबर है किसे,बिन मुकाम बोलिये।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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