#अत्याचार
सहमे-सहमे लोग दिखें,होता जहाँ व्यभिचार,
डाल रखा डेरा निश्चित,है वो #अत्याचार।
विस्तृत है इतिहास देश में,अत्याचारी लोगों का,
करते हँसी का सौदा और मजा उठाते भोगों का।
कंस और रावण सबसे हैं,इस पंक्ति में आगे,
इनके अत्याचारों से,त्रस्त मनुज थे भागे।
बहन देवकी को न बख्शा,उस निर्मोही शासक ने,
एक-एक छीना संतानों को,अत्याचारी शोषक ने।
गोकुल के हर जन पर डाला,अत्याचार का जाल,
हर घर का छीना उजियारा और हर नन्हा बाल।
निरीह प्रजा पर रावण ने भी घोर किया था अत्याचार,
दुष्ट दानवों को सिखलाया,उसने ही पापाचार।
विरह-वेदना दे सीता को,दुष्ट था वो मुस्काया,
देख बिलखती सीता को,उसने अट्टहास लगाया।
मुगलों ने भी भारत भू का,लूटा वैभव सारा,
निर्दोष बिलखती जनता को,था अत्याचार से मारा।
अंग्रेजों का हुआ देश में,पिछले दरवाजे आना,
निर्मोही उस शासन ने,था चैन देश का छीना।
खून पसीना हम थे बहाते और मलाई वो खा जाते
आवाज कभी उठ जाती तो दमन-चक्र उनके चल जाते।
ओरंगजेब-अन्यायी ने,देश में करने को अधिकार,
घोर किए जनता पर उसने,निर्मम अत्याचार।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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