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उठ-उठ सीता अब युद्ध तो कर

उस तृण की ताकत सिद्ध तो कर,
उठ.. उठ.! सीता अब युद्ध तो कर

तब गिद्ध ने रक्षण की सोची ,
अब गिद्ध ने देह तेरी नोची।
हिम्मत ना अपनी हार के चल,
उस पापी का प्रतिकार तो कर,
हे सीता अब लाचार ना बन,
अपने शत्रु का संहार तू कर।

उठ..उठ...सीता..
लंका में तब एक रावण था,
हर तरफ आज वो दुष्ट बसा।
उस तिनके को हथियार बना,
ना डर सीता तलवार उठा।
उठ..उठ सीता.. 



गर फिर आए वो बन भिक्षु,

नख से नोचन लेना चक्षु।.
नाजुक ना इसबार तू बन,
वध उसका कर तलवार को चुन।

उठ उठ सीता अब युद्ध तो कर .... 
नारी का शोषण करतों का
भूतल से अब व्यभिचार मिटा,
जन उद्धार के खातिर दुष्टों का
उठ..उठ सीता तू पाप मिटा।

उठ..उठ सीता...
कुदृष्टि डालते रावण को अब,
शक्ति स्वरूपा रूप दिखा।
कोमल ना अब कोई सीता है,
तू नर को ये अहसास दिला।
उठ..उठ सीता 


तब हनुमान ने मात कहा तुझको,
तू बोल आज हनुमान कहाँ।
लक्ष्मण रेखा की लाज को रख,
खुद की रक्षक तू आप ही बन।

उठ..उठ सीता...
ना अग्नि परीक्षा दे सीता,
ना वसुधा में जान समा सीता,
सतीत्व अपना सिद्ध ना कर,

उठ..उठ! सीता अब युद्ध तो कर।
उठ..उठ सीता...

#सुनीता बिश्नोलिया

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