दया
#आँखों देखी...
सिरहाने फ़क़ीर के,
एक भूखा कुत्ता भी सोया है,
मार खाके इन्सान की,
आज वो बहुत रोया है।
दोनों की आँखों में नींद तो नहीं
पर पड़े रहने के सिवा कोई काम भी तो नहीं..
पैरों से लाचार फ़क़ीर पर
किसी को दया नहीं आई थी।
वो कुत्ता भी बहुत अलसाया था
नींद उसे भी कैसे आती शायद उसने भी
कुछ कहाँ खाया था।
यों तो सारी कायनात जागती है
उस चौराहे पर रात भर
लेकिन उस फ़कीर की तो अपनी ही दुनिया है ।
जिस घर के पीछे कोने में
वो भिखारी पड़ा है,
उसी घर के नीचे साईकिल की दुकान है,
साईकिलवाले का भी यहीं छोटा सा मकान है।
उस घर से आती प्रेशर कूकर की सीटी सुन
सुन साईकिलवाल सामान समेट चल दिया,
पीछे दो ठंडी आहें छोड़कर....
रात बढ़ने के साथ कुत्ते और
फ़क़ीर की उम्मीद भी साथ छोडती है...
आज फिर वही भूख..वही तड़प..बेबसी,
वो कुत्ते को सहलाने लगा,
उसकी भूख का कारण खुद को बतलाने लगा।
खुद पर चाहे किसी को दया नहीं आई
पर वो उस श्वान पर दया और प्रेम लुटाने लगा।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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