#हरिवंश राय बच्चन
सन सत्ताइस के शुभ दिवस,
चमका एक सितारा था,
ये जग उसको प्यारा था,
वो जग का राज दुलारा था।
मन में उपजे उन्माद विकट
कवि छायावादी हुए प्रकट
लेकर कविता में तरुणाई,
हाला भी निकल बाहर आई।
अलंकार कुछ अधिक हुए,
वो 'पदम्' झुका पाकर के पद्म।
विद्या का दान महान कहा,
आचरण न रखा कभी छद्म।
वो कोटर का नन्हा पंछी
कभी न टूटा तूफानों से,
साथी पंछी राह में छूटा,
फिर खड़े हुए लड़ बाधा से।
खुद न कभी छलकाए जाम,
जग को दिखाया हाला धाम।
औरों के जीवन में ज्योति,
भरने की कसम खा बैठे थे,
राह पथिक को दिखलाने,
खुद बनके सितारा बैठे थे।
पाकर के वो 'अमित-अजित' तनय
हर्षाए हुए धन्य-धन्य।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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