#मंगल गीत
सखी गाओ मंगलगीत,आईss शुभ आज घड़ी है,
खुशियाँ हैं चहुँ ओर,अयोध्याs सजी खड़ी है,
पहने पुष्प-वल्लरी चीर,अयोध्या-अधीर बड़ी है।
बाजे मधुर मृदंग,मल्हार ध्वनि कर्ण पड़ी है,
ढोलऔर बाजे चंग,करने को सत्कार,सुहानी आज घडी है...
सखी गाओ...
सखी गाओ मंगलगीत,आई शुभ आज घड़ी है,
करो कुंकुम केसर अभिषेक,डोली द्वार खड़ी है।
गाओ गणनायक के गीत,पुष्प-पथ पर बिखराओ,
मंगल हो हर काज प्रथम, गणपति को ध्याओ।।
सखी गाओ मंगल...
सुमन-सजीले रोली-अक्षत ,मिल बरसाओ,
चरणों में जनक-नंदिनी के तुम थाल सजाओ।
दशरथ-सुत श्री राम की खुशियाँ और बढाओ,
तिलक लगाओ भाल,राह में दीप जलाओ।
सखी गाओ मंगल..
सखी गाओ मंगलगीत,राम-सिया संग पधारे,
करो पुष्पों की बरसात,धन्य हुए भाग हमारे।
घर आई जानकी मात,रामजी दुल्हन लाए
सखी गाओ मंगल गीत,'प्रभु' देखो हर्षाए।
सखी गाओ मंगलगीत ,राम-सिया संग पधारे...
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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