# मुझे पढ़ना है
अभी महावर मेहंदी न,
बाबुल बस्ता ला दो
मेहंदीवाली कड़ियाँ ना
बाबुल पैरों में डालो।
न पँख मेरे काटो बाबुल,
न बेड़ी पैरों में डालो।
अभी मेरे पैरों में घुँघरू,
आखर के बजने दो,
अभी मेरे पैरों में पायल
जूते की सजने दो।
छनक उठेगी शब्द सरिता
कल-कल छल-छल बहती
सुप्त मयूरा मन का बाबुल,
बन कोयल वीणा गाती।
बाबुल आखर की दुनिया से,
बस पहचान करा दो,
फिर इन पैरों में जंजीरे
मेंहदी की बंधवा दो।
पंख मेरे पैरों को आखर
अपने आप ही देंगे।
लोह-श्रंखला मेंहंदी वाली,
ये खुद ही तोड़ेंगे।।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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