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पन्नाधाय की ममता

#माँ की ममता (वात्सल्य रस) राजस्थान में की वीरमाता पन्ना धाय ने राणा उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था...उसी पर आधारित मेरी राजस्थानी भाषा में लिखी गई कविता...तथा ..पुन:हिंदी में लिखित यही कविता... ( कालजे की कोर नै माता, देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बहवै,टाबर सूँ जद बतलावै है। कान्हा की सी देख के सूरत,या माता यूँ इतरावै है, सोच काल री बात या माता, आँख्यां मैं आँसू ल्यावै है। फर्ज पै वारण जाती माँ ,उनै हिवड़ा से चिपकावै है, एक रात रै खातिर 'दीप' जल्यो,वोअब बुझण नै जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली, बलिदान करण नै जावै प्रेम रो सागर छलकाती,जीवण भर रो नेह लुटावै * * * * * * * यूँ ही नहीं संसार में, माँ को पूजा जाता है विपदा में मुख पे नाम प्रथम, माँ ही का तो आता है। मन की बात बताउंगी,एक भूली कथा सुनाऊंगी, पुत्र को धर्म पे किया अर्पण,उस धर्मा की बात बताऊँगी। जौहर की गाथा याद हमें मीरा के पद भी ना भूले, पुन:स्मृति में भरलो,पन्नाधाय को जो थे भूल चले। अपने ह्रदय के टुकड़े को माँ,देख-देख मुस्काती है, अंतर में निर्मल दुग्ध-धार,उफन-उफन कर जाती है। रूप सलोना आँखों को,स्निग्ध-शीतलता देता, अपलक निहारे नेत्र इसे,वात्सल्य का फूटे सोता। देख के अपने लाल को,माता 'पन्ना' है इतराती, वारूंगी पूत को फर्ज पे मैं,दृढ-संकल्प से भर-भर जाती। कहती मन में आज ये माँ ,कोख से वीर ने जन्म लिया, माँ का वचन है इक 'माँ' से,इसे देश के नाम है आज किया। ' उदय' हुए उस सूर्य के ऊपर,काला बादल मंडराता है, राहू सूरज पर छाया हैवो भक्षण करने आया है। माँ पूत को देख मुस्काती है,आँखों में उसे बसाती है। एक रात के जलते 'दीपक'पर,'जीवन' का प्यार लुटाती है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

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