#माँ
जीवन झोंका चूल्हे में,
चक्की के पाटों बीच फँसी,
सामंजस्य माँ का देखो,
मुश्किल सहकर भी रोज हँसी।
फूँक-फूँक कर चूल्हे को,
आँखें अविरल बहती हैं,
लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की,
पीस के भी हर्षाती हैं।
हर दाने के साथ श्वेद की,
बूँदें माँ की बहती हैं,
चुपचाप मेरी माँ चक्की पर
व्यायाम नियम से करतीं हैं।
होले से माँ के मुख से,
कुछ शब्द बहा करते हैं,
संगीत घर्र-घर्र चक्की के,
दो पाट दिया करते हैं।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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