#कहानी
#दर्द
साधारण किसान गोपाल अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ सांवली गाँव में रहता था। खेत में रखवाली करते समय पिता जी को गाय ने सींग मारकर घायल कर दिया।तब मुश्किल से उनकी जान बची पर बिस्तर पकड लिया।
गोपाल को उच्च शिक्षा दिलाने की इच्छा अधूरी रह गई। अनपढ़ माँ खेतीबाड़ी के काम में साथ देने के अलावा अन्य कार्य नहीं कर सकती थी।पिता का उसे न पढ़ा पाने का दर्द गोपाल महसूस कर सकता था। खेतों में काम करते हुए कैसे-जैसे उसने बारहवीं कक्षा पास कर घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली।
सारे गाँव वाले गोपाल की तारीफ करते और अपने बच्चों को उसका उदाहरण देते। खेत में बीज,उत्पादन क्षमता बढ़ाने,ऋण या अनाज बेचने संबंधी हर सलाह गाँव वाले गोपाल से ही लिया करते। खाली समय में वो अपने फोन से विभिन्न जानकारियाँ जुटाता और गाँव वालों को दिया करता।
अब ऐसे गुणी लड़के को लडकियों की क्या कमी। दूर-दूर से रिश्ते आते थे।पर रामखिलावन चाचा तो गोपाल को कब से अपने दामाद के रूप में देखते थे। वो जानते थे कि कविता और गोपाल भी एक-दूसरे को पसंद करते थे। इसलिए मौका देखकर उन्होंने गोपाल के माता-पिता से मिलकर शादी की बात की और शादी तय कर दी।
शादी के समय कविता बी.ए सेकैंड ईयर में पढ़ती थी। शादी के बाद भी उसने पढाई जारी रखी रोज घर के कार्य निपटाकर वो शहर के कॉलेज जाया करती। बी.ए अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण करने के बाद गोपाल और उसके पिताजी चाहते थे कि कविता सरकारी नौकरी करे इसलिए उसे घर के कामों में ज्यादा नहीं उलझाते और पढ़ने हेतु सहायता करते।
कविता भी सास-ससुर के रूप में माता-पिता पाकर अभिभूत थी। इसी बीच उसे ज्ञात हुआ कि वो माँ बनने वाली है। ख़ुशी के साथ ही उसे डर भी लगा कि कहीं मैं लक्ष्य से ना भटक जाऊँ, गोपाल का त्याग और परिश्रम व्यर्थ न हो जाये । यही सोचते-समझते हुए उसने कठोर मेहनत, दृढ़ इच्छा और लगन से तैयारी करने लगी।गोपाल भी सही समय पर उसकी दवाई और खान-पान का ख्याल रखता। सास-ससुर तो उसके पल-पल का हिसाब रखते क्या खाया, क्या पिया आदि-आदि। वो समय भी आ गया जब कविता की मेहनत और उसके परिवार की तपस्या का फल मिलना था। खबर गाँव भर में ख़ुशी भर देने वाली थी। आज कविता बैंक कर्मचारी के रूप में चयनित जो हो गई।
सभी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं सारा गाँव गोपाल के घर..विवाह का सा माहौल हो गया था घर का। इसी बीच कविता को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। लगभग आधे घंटे में कविता के माता-पिता और दो अन्य व्यक्तियों के साथ गोपाल कविता को लेकर शहर के सरकारी अस्पताल पहुँच गया। वहाँ उसके जैसे कई लोग..दर्द से तड़पती महिलाएँ,बीमार और घायल लोग।कुछ बेमौत मरते तो कुछ मौत का इंतजार करते अस्पताल के बाहर पड़े थे।
सभी के परीजन हाथ बांधे वहाँ के कर्मचारियों से डॉक्टर सा..ह..ब को बुलाने हेतु गिड़गिड़ा रहे थे। पर वो तो अपनी माँगे मनवाने के लिए हड़ताल पर थे। उन्हें न आना था न आए कुछ डॉ.जरुर थे वो इतने मरीजों के लिए अपर्याप्त थे।
एक डेढ़ घंटे तक वहाँ कविता को संभालने वाला कोई डॉ. नहीं आया। कविता बिगड़ती हालत देखकर गोपाल उसे लेकर एक से दूसरे अस्पताल में दौड़ता रहा पर किसी ने उसे नहीं संभाला।
प्रसव पीड़ा से कराहती कविता का #दर्द गोपाल के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। उसकी इतनी बुरी हालत देखकर निजी अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए। मुश्किल से एक अस्पताल में उसे भर्ती किया पर कई फार्म भरवाने के बाद। कविता दर्द से बेसुध हो चुकी थी और बच्चा पेट में ही एक डेढ़ घंटे पहले मर चुका था। डॉ.मुश्किल से कविता की जान बचा पाया।
आज पाँच दिन बाद उसे होश आया न जाने कब वो पूरी तरह ठीक होकर घर जाएगी।गोपाल और उसके परिवार का दर्द कुछ कम होगा और वो वो दर्ददायी सिस्टम और खुद को भगवान कहने वाले डॉ.से लड़ेगा क्योंकि उसने अब सीधे सिस्टम से टकराने की सोच ली है,सिर्फ अपनी 'कविता' के लिए नहीं वरन अस्पताल में #दर्द से तड़पते सैकड़ों मरीजों के लिए।
# सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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