#हास्य रस
#रसिक इंद्र
पहन गरारा नारदजी ने नृत्य सभा में कीन्हा,
डोल गया दिल इंद्र का एक देख दुपट्टा झीना।
नारद जी भी लजा -लजा कर घूँघट में मुस्काते,
दिखा इंद्र को नई अदाएँ अपनी और रिझाते।
थिरक रही नारद की काया,ज्यों नखरेली नार,
देख हंसीं ठुमके नारद के इंद्र को आया प्यार।
पीछे-पीछे डोल रहे मय की माया में खोय रहे,
इंद्र छिछोरे हुए अप्सरा जान के आपा खोय रहे।
इंद्राणी आ गई सभा में लेकर रंभा और शंभा,
हुई शर्म से पानी-पानी देख के पति निकम्मा।
झट-पट खींचा घूंघट नारद का,और देख मुस्काई,
वाह्ह नारद बहुत खूब क्या लाज न तुमको आई।
देख मिलीभगत दोनों की इंद्र हुए बैचन,
लुटी इज्जत भरे बाजार न मिले किसी से नैन।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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