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कहानी-भूख

#कहानी-भूख जिधर नजर दौड़ाओ हर तरफ हरियाली सीताफल,केले अमरुद ,आम के वृक्षों से हरित उड़ीसा का छोटा सा ग्राम। केशुभाई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी गाँव में रहता था। केशू भाऊ साहब के बागों में रखवाली का काम करता था बदले में उसे दो वक्त धान मिल जाता जिससे आधा-अधूरा पेट भर जाता और पाँच सौ ₹ मासिक पगार भी मिलती । बीवी भी दो तीन घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती ।थोड़े धान और कुछ पैसे वो भी कमा लेती । ऐसे ही गुजारा चल रहा था। लेकिन इस बार बारिश न के बराबर हुई बगीचों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी रखवाली के भाऊ साहब को चौकीदार रखना पड़े और फसल अच्छी न होने के कारण केशू की बीवी को भी घरों में काम मिलना बंद हो गया। अब तो उनके खाने के लाले पड़ गए ,रात को रुखा -सूखा मिल जाता तो दिन को नहीं..दिन को खाया तो रात को नहीं।इस अकाल के समय सरकार अपनी तरफ से गरीबों के भोजन-पानी की व्यवस्था कर रही थी पर न जाने क्यों वो व्यवस्थाएँ वो भोजन गरीबों तक ही नहीं पहुँच पा रहा था।हरा-भरा गाँव सूखने लगा था..केशूभाई की गृहस्थी,बच्चे,पत्नी और खुद भी लगभग सूख ही गए। धीरे-धीरे पूरे गाँव में हड्डियों के ढांचे घूमते नजर आ रहे थे। लोग उल्टा सीधा खा कर और बीमार और मर भी रहे थे। केशूभाई ने भी आम की गुठलियाँ बचा रखी थीं। बच्चों का #भूख मिटाने के लिए अब उसके अलावा और कुछ नहीं था..वही पुरानी आम की गुट्ठीयाँ फोड़ कर पत्नी ने सब को खिलाई लेकिन ज्यादा पुरानी होने के कारण वो जहरीली हो गई थीं..खाते ही उलटी..उफ्फ ,केशू का हड्डियों में तो इतनी भी ताकत नहीं रही कि वो उलटी करने कष्ट सह सके..उसके साँसों ने तत्काल जवाब दे दिया। अचानक भाऊ उधर आए और सबको अस्पताल ले गए। भाऊ के प्राण निकल गए पर बाकी सदस्यों के प्राण फिर #भूख से तड़पने के लिए बच गए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

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