#स्मृति/यादें
#दोहे
अलबेली उस शाम की,ताजा है हर याद।
संगम-साथी संग में, मीठा सा संवाद।।
स्मृतियाँ मेरे मन बसी,ज्यों गुलदस्ते फ़ूल।
महक मुझे हर फूल की,कभी न पाए भूल।।
संगम था साहित्य का,हिल-मिल मिलते लोग,
यादें ही बस शेष हैं,अजब-गजब संजोग।।
खुशियों में डूबे सभी,उत्सव वाली रात।
संग सजीली लाय हैं,यादों की सौगात।।
संगम के आलोक में,डूबा था इंदौर।
यादें ही बस रह गई,ताली का वो शोर।।
भूल न पाएँगे कभी,साहित्य-गुम्फित शाम।
कविताओं में है लिखा,संगम का ही नाम।।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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