#अंशुमाली
सागर की कोख में जैसे 'अंशुमाली' हुए पैदा
मध्य सागर के ये लगते झांककर देखते चेहरा।
अंशु इनकी है हरती तम,नित ये होती है 'अभ्युदित',
अपना विस्तार सागर में देख सूरज है ज्यों गर्वित।
पर....
शांत हृदय पर सागर के, आघात मनुज हर देता है,
फिर भी अपने हृदय का मोती,ये मानव को देता है।
जग का मैल समेटे सागर , हुआ बड़ा बदरंग है,
अमूल्य निधि का स्वामी ये,देख जहां को दंग है।
हृदय में सागर के भी पलता, प्रेम नदी को पाने ,
अपनी बाँहें फैलाकर,करता है निवेदन प्रेम का।
स्नेह-मिलन नदिया से करने,करता है सागर गर्जन,
पवन के संग हिलोरें ले, सागर करता है पूरे जतन।
ह्रदय से मोती-माणक ला,लहरों की बाँहें फैलाता,
अंतर का गहरा अनुराग तभी,ज्वार सा छलक उठता।
अपने शांत ह्रदय से ये दिनकर को पूजा करता है,
कडवाहट अपनी धोने,बन ऊष्मा सा उड़ जाता है।
सृष्टि का नियम निरंतर है,सागर के मन में आशा है,
बहता ना वो तोड़ नियम,पर क्रोध सुनामी जैसा है।
नदिया भी प्रीत में है पागल,आती इसके आलिंगन में,
चंचल नदिया के जल को ये,जलधि भर लेता अंतर में।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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