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अंशुमाली

#अंशुमाली सागर की कोख में जैसे 'अंशुमाली' हुए पैदा मध्य सागर के ये लगते झांककर देखते चेहरा। अंशु इनकी है हरती तम,नित ये होती है 'अभ्युदित', अपना विस्तार सागर में देख सूरज है ज्यों गर्वित। पर.... शांत हृदय पर सागर के, आघात मनुज हर देता है, फिर भी अपने हृदय का मोती,ये मानव को देता है। जग का मैल समेटे सागर , हुआ बड़ा बदरंग है, अमूल्य निधि का स्वामी ये,देख जहां को दंग है। हृदय में सागर के भी पलता, प्रेम नदी को पाने , अपनी बाँहें फैलाकर,करता है निवेदन प्रेम का। स्नेह-मिलन नदिया से करने,करता है सागर गर्जन, पवन के संग हिलोरें ले, सागर करता है पूरे जतन। ह्रदय से मोती-माणक ला,लहरों की बाँहें फैलाता, अंतर का गहरा अनुराग तभी,ज्वार सा छलक उठता। अपने शांत ह्रदय से ये दिनकर को पूजा करता है, कडवाहट अपनी धोने,बन ऊष्मा सा उड़ जाता है। सृष्टि का नियम निरंतर है,सागर के मन में आशा है, बहता ना वो तोड़ नियम,पर क्रोध सुनामी जैसा है। नदिया भी प्रीत में है पागल,आती इसके आलिंगन में, चंचल नदिया के जल को ये,जलधि भर लेता अंतर में। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

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