#हास्य मिश्रित वीर रस
सूरमा भोपाली को सूझी फिर से नई एक बात
सोच-सोचकर जागे मियां आज की पूरी रात।
आज गढ़ा है फिर एक किस्सा अपना रौब जमाने को बैठ गए ले चाय-चपाती,किस्सा-अपना सुनाने को।
सुड़प-सुड़प के चाय गटकते चब-चब खाते रोटी ।
बोले भईया "हम शेर से भिड़े गए पहन लंगोटी ।
जब हम गये शहर में भईया! अपने चाचा के घर में, वल्ला वल्ला गजब हो गया !आया शेर शहर में।
देख शहर में शेर दुबक गए, घर में सारे लोग,
चचा हमारे ले लोटा बाहर आए अजब संजोग।
आँखें चार शेर से करके चाचा तो थर-थर काँपे,
गिरा हाथ से लोटा ,गीला हुआ पजामा काँपे।
हम थे थोड़े व्यस्त कर रहे थे मियां मलखंब
दौड़ पड़े हम उसी हाल में लिया नहीं था दम।
शेर को हमने हाथ दिखाए अपने भारी-भारी
शेर बिचारा ढेर हो गया नहीं चली होशियारी।
जंगल की ओर दौड़ पड़ा वो देश हमारे दाँव
पीछे-मुड़कर भी न देखा..गया जो उलटे पाँव।
वाह्ह सारे कस्बे में हुई सूरमा भोपाली,
आकर बिल्ली ने तब खोली बात थी डरने वाली। #सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
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