वो दरख्तों के सीने पे घाव किया करते हैं
हम सूखी हुई शाख फिर से सिया करते हैं।
मारते हैं कटारी अपने जेब भरने को अपनी
हम तो मरते दरख्तों को दवा दिया करते हैं।
त्याग देता है जीवन खुशी से ये अपनी
ये मरके भी उनके घर मे जिया करते हैं।
शाख का हरएक पत्ता ये हमीं को हैं देते
हम इनसे घरों को सजा लिया करते हैं।
हाथ चलते हमारे ये देखो फुर्ती से इन पे
प्याले खुशियों के इनसे लिया करते हैं।
#सुनीता बिश्नोलिया©
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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