हास्य
थुल-थुल पेट, सज्जन सेठ,
दाल का प्याला,... पीकर गए लेट।
आँख खुली तो ,पेट में हलचल,
पड़ गए थे पेट में भी बल।।
सज्जन जी की बात बताऊं
क्या उन पर बीती आज सुनाऊं
चतुर खिलाड़ी बातें भरी
रोज - रोज करते थे।
ज्ञान के थे भंडार गांव में
मुफ्त में बांटा करते थे
अभियान स्वच्छता की बातें
वो बढ़ - चढ़ कर के करते थे।
न शौच खुले में करना सबको
सीख सिखाया करते थे।
कल की सुनना बात अभी तक
नहीं हुई थी भोर
घुप्प अंधेरा खेतों में था
जरा नहीं था शोर।
चिड़िया भी न चहकी अब तक
पसरा खेतों में सन्नाटा।
यहाँ-वहाँ देखा सज्जन जी,
ले चले हाथ में लोटा।
गुड़-गुड़ भारी हुई पेट में,
करती गैस भी अफरा तफरी।
चुप-चुप पीछे-पीछे-पीछे चलते,
गाँव के बच्चे सारे खबरी।
माहौल हवा का बदला पर..
बच्चों की जिद थी पूरी
है रंगे हाथ धरना बच्चू को
चले छिप-छिप थोड़ी दूरी।
रोज-रोज खुद शौच खुले में,
करते और बनते मामा,
बैठ रहे लो रखके लोटा,
ढीला करें पजामा।
अभियान स्वच्छता पर बच्चू जी
फेर रहे हैं पानी
सबक सिखाएंगे ऐसा कि
याद आएगी ननी।
बच्चों की सेना भी आय-हाय,
टूट पड़ी भगवान्
भाग पड़े ले इज्जत अपनी
सज्जन जी श्रीमान।
बच्चों ने भी रखी शर्त औेर,
उनका रस्ता छोड़ा
हबद - तबड में गिर गया लोटा
और टूटा गया भई नाडा
कान पकड़ कर माफी मांगी
बढ़ी पेट में हलचल
बोले बच्चो माफ़ करो
फिर न होगा ऐसा बिल्कुल।
जान छुड़ाकर भागे मिस्टर
गलती कर स्वीकार,
गुड़-गुड़ भी अब बढ़ी पेट की
भागे ज्यों खटारा कार।
#सुनीता बिश्नोलिया ©
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें