मेहरानगढ़ दुर्ग
इतिहास और स्थापत्य में विशेष होने के कारण साहित्यिक यात्राओं में भी किलों और महलों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती। कलमकार मंच के तत्वावधान में 2 दिसम्बर 2018 को सूर्यनगरी जोधपुर में आयोजित साहित्य कुंभ के दौरान कलमकार टीम के साथ मेहरानगढ़ किला देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसलिए इस अविस्मरणीय यात्रा के पूरे वृत्तांत से पहले मेरी नज़र से मेहरानगढ़ दुर्ग दिखाने का प्रयास करती हूँ।
देश के प्राचीनतम किलों में से एक, राव जोधा द्वारा बनवाया गया, राजस्थान के गौरवशाली अतीत की गाथा गाता। कहने को वृद्धावस्था की ओर अग्रसर किन्तु आज भी अपने समकालीन किलों एवं वर्तमान समय में बनी इमारतों को मुंह चिढाता रणबांकुरे युवा की भाँति गर्व से सीना ताने खड़ा अपने सौन्दर्य से अभिभूत करता मेहरान गढ़ दुर्ग।
दुश्मन के हर आक्रमण को सहने में सक्षम तीखे दाँतों और नुकीले नखों को संजोकर रखते सैनिक की भांति ' पावणों' के स्वागत में मुकुराहट बिखेरता खुला पड़ा मेहरानगढ़ का प्रवेश द्वार।मुस्कुराती,बलखाती,अठखेलियाँ करती मौसम और समय के थपेड़ों से बूढी होतीं अपने जख्म छुपाती इन बड़े-बड़े दरवाजों को धारण करती भुजाओं रूपी ऊँची-ऊँची प्राचीरें ।
आने वाले हर व्यक्ति को स्नेहपूर्वक अपने अंक में जगह देकर स्वयं ही अपने बोलते पत्थरों के माध्यम से गौरव गान सुनाकर बाँधता। कभी 'घूमर' की गूँज तो कभी परदेसी के सत्कार को आतुर 'पधारो म्हारे' देश' का स्वागत गान गाते इसी के संरक्षण में पले-बढे पर आज इसी का संरक्षण करते इसके बच्चे।
दुर्ग की शोभा बढ़ाते सुंदर-सुंदर,अलग-अलग नामों से अलंकृत..महल में ।मेहनतकश मसीहाओं के हाथों की महिमा का उद्घोष करते ऊँचे बुर्ज,महीन कलाकारी,वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रख कर निर्मित जल संग्रहण के स्त्रोत देखकर आज भी उस समय के इंजीनियरों अर्थात भवन-निर्माण विशेषज्ञों की बुद्धि पर आश्चर्य होता है।
गोपाल पोल,सूरज पोल,ध्रुव पोल,अमृत पोल,फतह पोल,भैरूं पोल,जय पोल आदि से इसकी स्थापत्य कला पर आश्चर्य होता है। इस किले को देखकर पर्यटक चाहे देसी हो या परदेसी राजपुताना का गौरवशाली अतीत,वैभव और रजवाड़ों के ठाट-बाट का परिचय स्वयं ही पा जाता है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राजवंश, पुरखों की परम्परा के वाहक राज-वंशजों की वीरता और शौर्य का बखान करता मेहरानगढ़ संग्रहालय।
खनकने को आतुर तलवारें, हस्त कला का प्रदर्शन करता शानदार फर्नीचर,सुंदर चित्रकारी,सुंदर एवं भारी राजसी परिधान पहने राजा-रानियों को प्रत्यक्ष उपस्थित देखने का अनुभव करवाती पोशाकें शांत संगीत सुनाते वाद्य यंत्र।
शिकार,भ्रमण एवं युद्ध का रोमांच बताते हाथी के होदे,राजसी बग्घियाँ, चंवर धुलाती सखियों के मध्य शान से डोली में बैठी महारानियों का स्मरण कराती भांति-भांति की डोलियाँ।
संकडे-घुमावदार रास्तों को पार कर ऊपर पहुँचने की जल्दी किन्तु रास्ते में आने वाली स्थापत्य की अद्भुत कलाकारी को रुक-रुककर देखने का लोभ संवरण ना कर पाना।
रणबांकुरों का यशगान करती दहाड़ने को आतुर ऊँची अट्टालिका पर सुप्त सिंहनी की तरह बैठी तोपें आज भी सूर्यनगरी के प्रहरी के कंधो पर चढ़ रक्षा हेतु सजग प्रतीत होती है। ऊपर से देखने पर जोधपुर एक नन्हे बालक की भांति मेहरानगढ़ की गोदी में कभी अठखेलियाँ तो कभी विभिन्न प्रकार की क्रिङाएँ करता दिखाई देता है।
मेहरानगढ़ दुर्ग में घुमावदार सीढियों से होते हुए लगभग 400 फीट की ऊँचाई पर स्थित चामुंडा माता के मंदिर में जाने का तो एक अलग ही अहसास है। वहाँ जाकर इससे जुड़ी अनेक किवदंतियों की जानकारी हुई कि किस प्रकार पाकिस्तान द्बारा की गई बमबारी से बचा ये मंदिर आज भी रण बांकुरे जोधपुर की आन बान और शान को बढ़ा रहा है।
काश! कि मैं वहाँ थोड़ी देर और रुक पाती इस अद्भुत दृश्य को कुछ देर और देख पाती,मेरी आँखों की पुतलियाँ अभी तक स्थिर हो ही नहीं पाई थी कि वापसी का निर्देश पाकर अनमनी सी लौट आई पुन: यहाँ आने के लिए।
सुनीता बिश्नोलिया©®
जयपुर
इतिहास और स्थापत्य में विशेष होने के कारण साहित्यिक यात्राओं में भी किलों और महलों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती। कलमकार मंच के तत्वावधान में 2 दिसम्बर 2018 को सूर्यनगरी जोधपुर में आयोजित साहित्य कुंभ के दौरान कलमकार टीम के साथ मेहरानगढ़ किला देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसलिए इस अविस्मरणीय यात्रा के पूरे वृत्तांत से पहले मेरी नज़र से मेहरानगढ़ दुर्ग दिखाने का प्रयास करती हूँ।
देश के प्राचीनतम किलों में से एक, राव जोधा द्वारा बनवाया गया, राजस्थान के गौरवशाली अतीत की गाथा गाता। कहने को वृद्धावस्था की ओर अग्रसर किन्तु आज भी अपने समकालीन किलों एवं वर्तमान समय में बनी इमारतों को मुंह चिढाता रणबांकुरे युवा की भाँति गर्व से सीना ताने खड़ा अपने सौन्दर्य से अभिभूत करता मेहरान गढ़ दुर्ग।
दुश्मन के हर आक्रमण को सहने में सक्षम तीखे दाँतों और नुकीले नखों को संजोकर रखते सैनिक की भांति ' पावणों' के स्वागत में मुकुराहट बिखेरता खुला पड़ा मेहरानगढ़ का प्रवेश द्वार।मुस्कुराती,बलखाती,अठखेलियाँ करती मौसम और समय के थपेड़ों से बूढी होतीं अपने जख्म छुपाती इन बड़े-बड़े दरवाजों को धारण करती भुजाओं रूपी ऊँची-ऊँची प्राचीरें ।
आने वाले हर व्यक्ति को स्नेहपूर्वक अपने अंक में जगह देकर स्वयं ही अपने बोलते पत्थरों के माध्यम से गौरव गान सुनाकर बाँधता। कभी 'घूमर' की गूँज तो कभी परदेसी के सत्कार को आतुर 'पधारो म्हारे' देश' का स्वागत गान गाते इसी के संरक्षण में पले-बढे पर आज इसी का संरक्षण करते इसके बच्चे।
दुर्ग की शोभा बढ़ाते सुंदर-सुंदर,अलग-अलग नामों से अलंकृत..महल में ।मेहनतकश मसीहाओं के हाथों की महिमा का उद्घोष करते ऊँचे बुर्ज,महीन कलाकारी,वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रख कर निर्मित जल संग्रहण के स्त्रोत देखकर आज भी उस समय के इंजीनियरों अर्थात भवन-निर्माण विशेषज्ञों की बुद्धि पर आश्चर्य होता है।
गोपाल पोल,सूरज पोल,ध्रुव पोल,अमृत पोल,फतह पोल,भैरूं पोल,जय पोल आदि से इसकी स्थापत्य कला पर आश्चर्य होता है। इस किले को देखकर पर्यटक चाहे देसी हो या परदेसी राजपुताना का गौरवशाली अतीत,वैभव और रजवाड़ों के ठाट-बाट का परिचय स्वयं ही पा जाता है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राजवंश, पुरखों की परम्परा के वाहक राज-वंशजों की वीरता और शौर्य का बखान करता मेहरानगढ़ संग्रहालय।
खनकने को आतुर तलवारें, हस्त कला का प्रदर्शन करता शानदार फर्नीचर,सुंदर चित्रकारी,सुंदर एवं भारी राजसी परिधान पहने राजा-रानियों को प्रत्यक्ष उपस्थित देखने का अनुभव करवाती पोशाकें शांत संगीत सुनाते वाद्य यंत्र।
शिकार,भ्रमण एवं युद्ध का रोमांच बताते हाथी के होदे,राजसी बग्घियाँ, चंवर धुलाती सखियों के मध्य शान से डोली में बैठी महारानियों का स्मरण कराती भांति-भांति की डोलियाँ।
संकडे-घुमावदार रास्तों को पार कर ऊपर पहुँचने की जल्दी किन्तु रास्ते में आने वाली स्थापत्य की अद्भुत कलाकारी को रुक-रुककर देखने का लोभ संवरण ना कर पाना।
रणबांकुरों का यशगान करती दहाड़ने को आतुर ऊँची अट्टालिका पर सुप्त सिंहनी की तरह बैठी तोपें आज भी सूर्यनगरी के प्रहरी के कंधो पर चढ़ रक्षा हेतु सजग प्रतीत होती है। ऊपर से देखने पर जोधपुर एक नन्हे बालक की भांति मेहरानगढ़ की गोदी में कभी अठखेलियाँ तो कभी विभिन्न प्रकार की क्रिङाएँ करता दिखाई देता है।
मेहरानगढ़ दुर्ग में घुमावदार सीढियों से होते हुए लगभग 400 फीट की ऊँचाई पर स्थित चामुंडा माता के मंदिर में जाने का तो एक अलग ही अहसास है। वहाँ जाकर इससे जुड़ी अनेक किवदंतियों की जानकारी हुई कि किस प्रकार पाकिस्तान द्बारा की गई बमबारी से बचा ये मंदिर आज भी रण बांकुरे जोधपुर की आन बान और शान को बढ़ा रहा है।
काश! कि मैं वहाँ थोड़ी देर और रुक पाती इस अद्भुत दृश्य को कुछ देर और देख पाती,मेरी आँखों की पुतलियाँ अभी तक स्थिर हो ही नहीं पाई थी कि वापसी का निर्देश पाकर अनमनी सी लौट आई पुन: यहाँ आने के लिए।
सुनीता बिश्नोलिया©®
जयपुर
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