अमृतसर श्रद्धांजलि
19 अक्टूबर 2018 अमृतसर, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक विजय दशमी के दिन, राम के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना से दम्भी रावण के गर्व को धू धू कर जलता देखने का उत्साह मन लिए अपने परिवार के साथ हजारों की संख्या में लोग घर बाहर के काम निपटा कर जोड़ा फाटक एकत्र हो गए। भला भारत में कुछ को छोड़कर कोई मुख्य अतिथि समय पर आया है जो इस बार आता खैर मुख्य अतिथि के आगमन के पश्चात् राम ने जलती हुई तीर रावण की ओर छोड़ी, तीर सीधे रावण की नाभि में लगी रावण कराह उठा, उसका अहम जल उठा। उसका ह्रदय अपने ही ह्रदय में छिपे बारूद से फट गया। उसका पहाड़ सा शरीर घोर गर्जना
करता हुआ धराशायी होने लगा। परिवार के साथ उसे देखने आए लोगों का भी जोश चरम पर था। चहूँ ओर राम के जयकारे गूंज रहे थे।
बस, रावण की चित्कार और राम के जयकारों के अतिरिक्त वहाँ और कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी, भक्त ये दृश्य देखकर आनंदित थे.................. अचानक काल की क्रूर गति से आगे बढ़ती ट्रेन, घुप्प अँधेरे में पटरियों पर खडे लोगो को काटती, रौंदती, चली गई उत्साह और ख़ुशी मातम में बदल गई, मौत के तांडव का ऐसा वीभत्स दृश्य....उफ्फ्फ.... हाहाकार.... चित्कार.. पर जिम्मेदार कौन?
श्रद्धांजलि उन सभी निर्दोष लोगों को जो असमय क्रूर काल की गोद में समा गए..
श्रद्धांजलि
करता हुआ धराशायी होने लगा। परिवार के साथ उसे देखने आए लोगों का भी जोश चरम पर था। चहूँ ओर राम के जयकारे गूंज रहे थे।
बस, रावण की चित्कार और राम के जयकारों के अतिरिक्त वहाँ और कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी, भक्त ये दृश्य देखकर आनंदित थे.................. अचानक काल की क्रूर गति से आगे बढ़ती ट्रेन, घुप्प अँधेरे में पटरियों पर खडे लोगो को काटती, रौंदती, चली गई उत्साह और ख़ुशी मातम में बदल गई, मौत के तांडव का ऐसा वीभत्स दृश्य....उफ्फ्फ.... हाहाकार.... चित्कार.. पर जिम्मेदार कौन?
श्रद्धांजलि उन सभी निर्दोष लोगों को जो असमय क्रूर काल की गोद में समा गए..
श्रद्धांजलि
पुण्य-धरा स्वर्णिम माटी,
अमृत-जल से थी सिंचित
गूंज रहे जयकारों में ही
आज हुई फिर रक्त से रंजित।
नहीं चली डायर की गोली
और न था आतंकी साया
घोर-गर्जना रावण ने कर
फिर पापी- वज्र चलाया।
कालगति चुपके से आई
गूंज उठी क्षण में चित्कार।
देख रहा था मूक खड़ा
बनता था जो पहरेदार।
हँसी-ख़ुशी मातम में बदली
हुआ मौन उल्लास।
कटे-अंग मासूमों के
जिंदा भी बन गए लाश।
हुआ मात का सूना आँचल
और छिना सिंदूर
माँ भी सो गई चिर निद्रा में
हुई लाल से दूर।
कंत समेटे अंग संगिनी
छोड़ गई मझधार
साधे मौन खड़े हैं फिर क्यों
देश के पहरेदार।
कौन है रावण ? कहो हृदय में
भरा था जिसके बारूद
याकि जिम्मेदार भाग रहे
अपराधी हैं वो खुद???
#सुनीता बिश्नोलिया©
अमृत-जल से थी सिंचित
गूंज रहे जयकारों में ही
आज हुई फिर रक्त से रंजित।
नहीं चली डायर की गोली
और न था आतंकी साया
घोर-गर्जना रावण ने कर
फिर पापी- वज्र चलाया।
कालगति चुपके से आई
गूंज उठी क्षण में चित्कार।
देख रहा था मूक खड़ा
बनता था जो पहरेदार।
हँसी-ख़ुशी मातम में बदली
हुआ मौन उल्लास।
कटे-अंग मासूमों के
जिंदा भी बन गए लाश।
हुआ मात का सूना आँचल
और छिना सिंदूर
माँ भी सो गई चिर निद्रा में
हुई लाल से दूर।
कंत समेटे अंग संगिनी
छोड़ गई मझधार
साधे मौन खड़े हैं फिर क्यों
देश के पहरेदार।
कौन है रावण ? कहो हृदय में
भरा था जिसके बारूद
याकि जिम्मेदार भाग रहे
अपराधी हैं वो खुद???
#सुनीता बिश्नोलिया©
नमन 🙏🙏
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