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वो दिन कभी ना भूल पाऊँगी #एहसास #मनुष्यता



शादी के पंद्रह दिनों बाद ही पतिदेव के नियुक्ति स्थान पटना जाना पड़ा। मैं कुत्ते - बिल्लियों से बहुत डरती थी इसलिए पतिदेव ने ये नहीं बताया कि पटना में इनके पास कुत्ता है। डेढ़ दिन की यात्रा के पश्चात मैं खुशी-खुशी पटना पहुंचीं। अपने अच्छे व्यवहार के चलते वहाँ बहुत परिवारों में पतिदेव का आना-जाना था इसलिए मेरा भी वहाँ काफी अच्छा स्वागत हुआ तथा दो-तीन दिन तक तो मुझे खाना बनाने के बारे में भी सोचना नहीं पड़ा। दो दिन तो सब ठीक रहा पर तीसरे ही दिन ऑफिस से आते पतिदेव के साथ कुत्ते को देख कर घबरा गई।पहले तो मैंने दरवाजा ही नहीं खोला पर बहुत समझाइशों के बाद मुझे दरवाजा खोलना पड़ा। ज्योंही पतिदेव के साथ वो घर में दाखिल हुआ, मुझे सूंघने और चाटने लगा। मैं डरती हुई इधर-उधर बैठने लगी और कैसे जैसे खाना बनाया लेकिन मैंने देखा कि वो आने के बाद मेरे आसपास ही चक्कर काट रहा था और प्यार भरी नजरों से मुझे देख रहा था। मैंने भी अब धीरे - धीरे उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो मेरा थोड़ा डर कम हो गया। मैं ये सोचकर डर रही थी कि आज तो चलो कोई बात नहीं पर सबसे ज्यादा डर तो कल का है जब मुझे पूरा दिन उसके साथ अकेले रहना था। पतिदेव आदतानुसार सुबह - सुबह उसे बाहर घुमाकर लाए और उसे नहलाकर खाना खिलाया और खुद ऑफिस चले गए। पीछे से ना ही तो मुझे उससे डर लगा ना ही कोई परेशानी हुई बल्कि उसके साथ दिन बड़ी जल्दी बीत गया। मेरे लिए अब वो मात्र कुत्ता नहीं रहा था मेरे जीवन का रक्षक और मुझ नवविवाहिता का प्यारा सा संरक्षक था।  मैं जान बूझकर कभी कभार चप्पल जूते कमरे से बाहर रख देती वो अंदर ले आता कभी कपड़े कभी कुछ एेसे ही खेलते। अब तो पति के ऑफिस जाने के बाद वो मेरा और मैं उसका ध्यान रखते,हम दोनों पक्के मित्र बन गए थे। पति भी तसल्ली से मुझेे उसके भरोसे छोड़ कर ऑफिस के काम से दूसरे शहर जाना होता तो चले जाते इसबार भी एेसा ही हुआ ये किसी काम के सिलसिले में अलवर गए घर पर मैं और जिमी। सबसे उपरी मंजिल के फ्लैट में रहे के कारन थोड़ा खुला बरामदा भी था। जिसमें एक लोहे का झूला लगा था जब मन होता तो मैं और जिम्मी उसी पर बैठे रहते। वहीँ बैठ कर दूसरे दिन मैंने उसे नहलाया और बालों में कंघी कर ही रही थी अचानक वो मुझे जोर-जोर से खींचने लगा मैंने उसे डांटा पर वो नहीं माना। ना जाने उसे किस बात का एहसास हो रहा था जो वो मेरे कपड़े खींच कर वो मुझे कमरे में ले जाने लगा ज्यों ही मैं उस जगह से हटी,पड़ोस में चौथे माले की नव-निर्मित दीवार उस जगह गिर गई जहाँ हम बैठे थे । डर व आश्चर्य के मारे मेरे मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। आँखों से अश्रुधार बह उठी,बार-बार उस फ़रिश्ते को प्यार कर रही थी जिसने खुद ही को नहीं वरन मुझे बचाया। आज वो इस दुनिया में नहीं है पर मैं मानती हूँ कि मेरी हर साँस उसकी देन है। आज भी मैं कुत्ता रखती हूँ इसलिए उसे भी हम भी जिमी ही कहते हैं। मुझे इसमें उसी जिमी की छवि दिखाई देती है।मेरा परिवार जानवरों से बहुत प्रेम करता है बच्चों की ही तरह उसका भी ध्यान रखते हैं. ..इसीलिए वो सबका लाडला है... हमारा जिमी रास्ते के कुत्तों से घर की बालकनी में बैठकर बड़ी बातें भी करता और उन पर भौंकता भी था । हमें लगता कि ये बाहर घूमने वाले कुत्तों की स्वतंत्रता से चिढ़ता है इसलिए हम उसे बिना बांधे भी बाहर ले जाते पर वो थोड़ी ही देर में वापस घर की तरफ मुड़ जाता। बात #18 नवंबर 2018 यानि आज के ठीक एक वर्ष पहले की है सुबह - सुबह गाड़ी साफ करने वाले भैया के साथ साथ ना जाने जिमी कैसे अपने आप घर से बाहर चला गया। हमें उसके बाहर जाने का बिल्कुल पता नहीं चला। लगभग आधे घंटे के बाद हमने उसे बाहर ले जाने के लिए ढूंढा तो वो पूरे घर में कहीं नहीं मिला। सब मुझसे पूछ रहे थे पर मुझे साढ़े सात स्कूल जाना था इसलिए मैं जल्दी जल्दी किचन में काम कर कर रही थी इसलिए मुझे भी ध्यान नहीं था कि वो बाहर कैसे गया क्योंकि मेरे हिसाब से तो वो अभी भी बालकनी में ही बैठा था। घर का दरवाजा भी अंदर से बंद, अब बच्चे मुझे दोष देने लगे कि आप किचन में हो तो वो कैसे निकल गया। खैर दोनों बच्चे और उनके पापा तीनों ही उसे ढूंढने निकल गए, आसपास कहीं नहीं मिला तो गाड़ी और स्कूटर से उसे ढूंढा गया.. मगर वो नहीं मिला। मंदिर के सामने एक चाय की थड़ी वाले भैया ने बताया जब वो दुकान खोल रहे थे तो एक सफेद कुत्ते के पीछे छह सात कुत्ते पडे़ हुए थे यह सुनकर मैं और बेटी तो रोने लगे। स्कूल में जरूरी काम होने के कारण मुझे हर हाल में स्कूल जाना था इसलिए मैं रोते - रोते ही स्कूल गई। वहाँ सभी ने मुझे सांत्वना दी और जिमी के मिल जाने का विश्वास भी। मैं बीच - बीच में घर पर फोन करके पूछ रही थी क्योंकि घर पर सब उसे ढूंढने में ही लगे हुए थे। कैसे - जैसे हाफ डे तक मैंने स्कूल में जरूरी काम ख़तम किया। काम ख़तम होते ही प्रिंसीपल मैडम ने मुझे बुलाकर जिमी के मिल जाने का विश्वास दिलाकर घर जाने के लिए कह दिया। उस समय उन्होंने मुझे बिना माँगे यह खुशी दी इसलिए मेरे पास उनका आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे। मैं बैग उठाकर स्कूल के दरवाज़े तक ही आई थी कि वहाँ स्कूल की बस के ड्राईवर #प्रभु भैया मिल गए। उन्होंने जल्दी जाने का कारण पूछा तो मैंने कहा आप एक ऑटो का इंतजाम कर दो बस, मेरी शक़्ल देखकर उन्होंने फिर से पूछा तो मेरी आँखों में आँसू आ गए और मैंने उन्हें जिमी के खो जाने की बात बताई और कहा आप ऑटो लादें तो मैं उसे ढूँढती हुई घर जाऊँ। मेरी बात सुनते ही उन्होनें उसका रंग पूछा और मेरे सफेद रंग बताते ही उन्होंनें उसके बेल्ट का रंग बताया और मुझे खुश होने और मिठाई खिलाने के लिए कहा। इतने में दो-तीन ड्राईवर भैया और आ गए और उन्होनें बताया कि जिमी तो आठ बजे ही स्कूल के सामने आकर बैठ गया था और उसने स्कूल के अंदर आने की भी बहुत कोशिश की थी पर हमने अंदर नहीं आने दिया तो बाहर बैठा रहा। प्रभु भैया ने बताया कि हम लोग नहीं समझ पा रहे थे कि ये यहाँ क्यों बैठा है, हमने सोचा बैठा रहने दो जिसका भी है वो ले जाएगा लेकिन ये यहाँ आसपास का तो नहीं लग रहा। थोड़ी ही देर बाद सात-आठ कुत्तों का झुंड आया और उस पर टूट पड़ा लेकिन वो भी वीर योद्धा की तरह उनपर गुर्राया। पर दुश्मनों की संख्या ज्यादा देखकर भागने लगा। अब वो आगे और गली के कुत्तों का झुंड पीछे - पीछे भागने लगा। ये देखकर हम लोगों से रहा नहीं गया हमें लगा कि ये सारे मिलकर तो इसे मार डालेंगे इसलिए हम भी बाईक और ऑटो लेकर उन सबके पीछे हो लिए। अब उस सफेद कुत्ते ने एक खाली प्लॉट में छलांग लगादी,पीछे पीछे अन्य कुत्ते भी उसमें कूदने लगे और उसे घेर लिया । हम लोग भी चार थे इसलिए वहीं से पत्थर उठा-उठाकर उन कुत्तों को कैसे-जैसे भगाया और उस सफेद कुत्ते की तरफ गए तो उसने हमें दांत दिखाकर डराने की कोशिश की पर अब शायद उसे समझ आ चुका था कि हम उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे इसलिए जब हमने उसका बैल्ट पकड़ा तो उसने कुछ नहीं किया और शांति से हमारे साथ आ गया। उनकी बात खत्म होने से पहले ही मैंने पूछा अब कहाँ है ना जाने उसे कितनी चोट लगी होगी, प्लीज भैया बताइए... मुझे उसके पास लेकर चलिए। प्रभु भैया ने कहा मैम आप चिंता ना करें वो बिल्कुल ठीक है उसने किसी कुत्ते को अपने अड़ने तक नहीं दिया और निश्चिंत रहें वो मेरे घर पर है। आप चलिए मेरे साथ मेरे घर वो आराम से बैठा होगा। अब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था मैं भईया के साथ ऑटो में बैठकर उनके घर गई और घर के बाहर से ही जिमी जिमी कह कर आवाज लगाई तो अंदर से उसका खुशी से रोकर मेरे लिए जबाव आया। हम एक दूसरे को बोली से पहचान चुके थे बस बीच में था लोहे का एक बड़ा सा दरवाजा जिसे पार करते ही हम एक दूसरे के सामने थे। उस समय जिमी का करुण स्वर और एक बच्चे की तरह मुझसे लिपटना.... मैं कभी नहीं भूल सकती... नहीं भूल सकती मेरी आँखों से बहते ममता के सागर को... नहीं भूल सकती हूँ उन मनुष्यों को जिन्होनें सच्चे अर्थों में मानव होने का दायित्व निभाकर किसी अनजान जानवर के प्राणों की रक्षा की।












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