#अवसरवाद
साहब की सवारी देख हरिया
काफ़िले के पीछे पीछे चल पड़ा,
रथ के रुकते ही...
"साहब प्याज की फसल
खराब हो गई
मैं बर्बाद हो गया,"
कहते हुए हरिया का
गला रुंध आया।
उम्मीद भरी उन आँखों में
बस.. दर्द मुझे नज़र आया।
मगर साहब इसे ना देख सके
चुनाव निकल जो गए।
मजबूर,लाचार बेकार,
रोज ही तो आते हैं इनके पीछे,
मगर ये डील
हाथ से ना निकल जाए।
इसलिए आश्वासन और
फिर मिलने का
वादा कर
साहब चल दिए
भेड़ों के झुंड में
आज सौदा जो तय करना था।
अहा! ये भेड़ें
कितनी खुशनसीब हैं
फाईव स्टार बाड़े में!!!
देखी-देखीं सी लगी,
अरे! ये तो कुछ दिन पहले,
झुंडों में बंटी... लड़ रहीं थीं
एक - एक रोटी को
भूख से बहुत मिमीयायी थीं,
ये सोचकर रोटी खिला दी
शायद मेरे किसी काम आ सकें कभी ।
मगर.. बड़ी मौकापरस्त निकलीं ये
छोड़कर अपना-अपना झुंड
आज फाईव स्टार बाड़े में!!!.
मेरे प्याज की पूरी फ़सल
तो एक प्लेट में सज जाती
अगर मेरी फ़सल ख़राब न हो जाती।
सब भेड़ें... अरे कौनसी किस झुंड की है
सोचते हुए हरिया का
सिर घूम गया
उफ्फ!! ये कहाँ
मेरी मदद करेंगी...
मेरा रोटी बेकार गई....
कोई बात नहीं मैंने
कर्त्तव्य निभाया,
ईमान तो इन्होंनें बेचा है
साहब सामने गिड़गिड़ाकर
क्या मिलेगा मुझे
साहब तो खुद आज
भिखारी.. नहीं.. सौदागर
नहीं... उफ्फ चलता हूँ,
फिर खेत में...
दूसरी फ़सल बोने।
सुनीता बिश्नोलिया©®
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