#लॉकडाउन डायरी
#उज्ज्वल भविष्य का निर्माण
सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम निपटाकर साढ़े सात बजे स्कूल जाना और प्यारे-प्यारे बच्चों का अभिवादन स्वीकार कर घर को भूलकर अब इन्हीं बच्चों के साथ प्रार्थना सभा में खड़ा होना।
स्कूल में इधर-उधर भागते उछलते -कूदते और धमा चौकड़ी मचाते बच्चे हँसते-मुस्कुराते बच्चों के साथ दिन कब बीत जाता पता ही नहीं चलता था। पर कोरोना संकट के कारण वार्षिक परीक्षा भी पूरी नहीं हो पाई कि बच्चों की सुरक्षा हेतु सरकार की घोषणा से पहले ही स्कूल प्रशासन ने बच्चों की छुट्टी घोषित कर दी। दो दिन बाद सरकारी आदेश के पश्चात अध्यापकों को भी घर से स्कूल का कार्य करने हेतु निर्देश देकर छुट्टी कर दी गई तथा अभिभावकों को आश्वासन दिया कि किसी भी हाल में बच्चों की पढ़ाई नहीं ख़राब होगी।
दो ही दिन में छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई की रूपरेखा तैयार हो गई और बच्चों से मोबाइल के माध्यम से संपर्क करने लगे।
छुट्टी होते ही कई बच्चे गाँव चले गए कई यहीं पर थे, कुछ फोन उठाते कुछ नहीं, कुछ का बाद में फोन आता-
'नमस्कार मैम मैं हर्षिता की मम्मी बोल रही हूँ,सॉरी मैम आपका फोन नहीं उठा पाई क्योंकि हम गाँव आए हुए हैं यहाँ नेटवर्क में बहुत दिक्कत है। हम तो सिर्फ दो दिन के लिए आए थे पर अचानक लॉकडाउन में यहीं फँस गए। लगता है ये लॉकडाउन लंबा चलेगा बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी? '
'कोई बात नहीं मैडम बच्चों की पढ़ाई खराब नहीं होगी ये नियमित रूप से पढ़ेंगे, आपको इसलिए फोन किया था कि कल से हर्षिता की ऑनलाइन क्लास शुरू हो रही है। इसलिए प्लीज आप भी बच्ची को थोड़ा समय देकर इसकी पढ़ाई का ध्यान दें।'
मैंम यहाँ हमारे पास कम्प्यूटर-लेपटॉप तो है नहीं फिर कैसे पढ़ाओगे आप ।'
'कम्प्यूटर-लेपटॉप नहीं है बस इतना बता दीजिए कि जिस मोबाइल पर अभी हम बात कर रहे हैं वो आप ही का है ना? '
'जी मैडम ये मोबाइल तो मेरा ही है।'
'नेटवर्क कभी-कभार तो ठीक है आता होगा ना यहाँ। '
' हाँ जी मैडम कभी तो ठीक आता है कभी-कभार नहीं भी आता , हाँ घर की छत पर तो अधिकतर नेटवर्क आ ही जाता है। '
' ठीक है मैडम कल से आप हर्षिता को थोड़ा समय दें हम बारी-बारी से विभिन्न विषयों को पढ़ाएँगे, उसका वीडियो और पाठ आधारित प्रश्नोत्तर की कार्यपत्रिका भेजेंगे। आप बच्ची को मोबाइल दें और इसके साथ बैठें तथा स्कूल के कार्य में मदद करें। '
' जी मैडम धन्यवाद...
नमस्कार मैम, मैं मोहित ठेलासर....मैं आदित्य बाड़मेर....मैं उमेश नागौर.... सुबह से फोन पर बात करते हुए कब दोपहर हो गई पता ही नहीं चला । अचानक हुए लॉकडाउन में जो जहाँ था वो वहीं फँस गया लेकिन बच्चे चाहे जहाँ भी हों हमें उन्हें पढ़ाना था। इसलिए सुबह आठ बजे से ही बच्चों को फोन लगाना शुरू कर दिया।
बच्चों और उनके अभिभावकों से बात करके ये तो पता चल गया कि सभी बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं। उनकी बातों से लगा कि ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर आशान्वित है कि कम से कम हमारे बच्चे की नियमित पढ़ाई होगी। और इस बात से उत्साहित और आश्वस्त भी थे कि विद्यालय परिवार उनकी पढ़ाई को लेकर प्रतिबद्ध हैं।
सुबह आठ बजे से बच्चों से बातें के साथ ही पढ़ाना शुरू कर दिया और शीघ्र ही अभिभावकों की टिप्पणियों के माध्यम से इसके सकारात्मक परिणाम आने लगे। हम दुगने उत्साह से बच्चों को पढ़ाते हैं और नहीं समझ आने पर बच्चों के पूछने पर फोन अथवा वीडियो के माध्यम से समझा कर शंकाओं का समाधान करते हैं।
अभिभावकों की नजरों के सामने बच्चे बढ़ते हैं तथा बड़ी लगन से अध्यापकों का दिया कार्य समय पर पूरा करते हैं। ये देखकर अभिभावक कहते हैं बच्चे सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते हैं तो एेसा लगता है जैसे बच्चे रोज स्कूल जाकर आए हैं। तथा क्लास के समय इन्हें इतनी समझदारी और शांति से बैठे देखकर बहुत खुशी होती है। एेसा लगता है जैसे हम अपने छात्रों के और करीब आ गए तथा अभिभावकों से भी सीधा संवाद स्थापित हो गया जिससे किसी समस्या के लिए कोई जगह नहीं रही।
हालांकि हम शिक्षक मेहनत रेग्युलर स्कूल समय में भी बहुत करते थे लेकिन लगता है आज हमारी मेहनत दुगनी हो गई। किंतु बच्चों और उनके भविष्य को लेकर चिंतित उनके माता-पिता को पढ़ाई से संतुष्ट देखकर हम और मेहनत करने को भी तैयार हैं।आखिर वैश्विक संकट कोरोना महामारी के कारण उपजे संकट को समाप्त करने हेतु किए लॉकडाउन में हम भारत के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण हेतु प्रयासरत जो हैं।
सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर
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