एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥
अर्थात् एक दाँत और सुन्दर मुख वाले, शरणागत एवं भक्तजनों के रक्षक तथा पीड़ा का नाश करनेवाले शुद्धस्वरूप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।
हर हृदय में बसते हैं और घर-घर पूजे जाते हैं आदिदेव महादेव के पुत्र गजानन। नए कार्य का शुभारम्भ हो अथवा धार्मिक उत्सव, विवाहोत्सव हो अथवा अन्य मांगलिक अवसर। कार्य सिद्धि हेतु सर्वप्रथम पूजे जाते हैं एकदंत।
रिद्धि- सिद्धि और समृद्धि के दाता,आपदाओं से रक्षा करने वाले, शुभ-भाग्य प्रदाता, बिना व्यवधान के कार्य संपन्न कर्ता गौरी पुत्र गणेश शुभ के रूप में हर घर में विराजमान रहते हैं और पूजे जाते हैं।
पुराणों के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को विघ्नहर्ता गणेश का जन्म का हुआ।
इसीलिए देश के विभिन्न भागों में गणेश चतुर्थी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोगों के घर गणपति का आगमन होता है। लोकमान्यता के अनुसार गणेश को घर में 10 दिन रखने की परंपरा है।
गणपति को दस दिन घर में रखने की बाध्यता न होने के कारण लोग इन्हें अपनी इच्छानुसार घर में रखते हैं। कोई इन्हें 1 दिन के भी घर ले आते हैं तो कोई 3 या 4 दिन के लिए भी गणपति को घर में लाकर स्थापित करते हैं।
घर में सुख, समृद्धि, संपन्नता एवं मनोकामना की पूर्ति हेतु लोगों द्वारा श्रद्धाभाव से मोदक का भोग लगाकर नियमित पूजा अर्चना के पश्चात गणेशोत्सव के आखिरी दिन अर्थात् अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति जी का विसर्जन किया जाता है।
हिंदू धर्म- ग्रंथों में भगवान गणेश के जन्म के संदर्भ में कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार माना जाता है कि माता पार्वती ने एक दिन हल्दी का उबटन लगाया गया था और स्नान करने से पूर्व हल्दी के उबटन से उतरे मैल को एक बालक का रूप दे देकर उसमें प्राण डाल दिए और उसे अपना द्वारपाल बना कर द्वार के बाहर बैठा दिया।
बालक गणेश जब द्वार पर पहरा दे रहा था तब भगवान शिव ने भवन के अंदर प्रवेश करना चाहा तो बालक ने उन्हें रोक दिया। बालक की यह उद्दंडता देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और अपने गणों को बालक से युद्ध का आदेश दे दिया।
गणेश एवं शिवगणों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ किंतु इस युद्ध में गणेश को कोई पराजित नहीं कर सका। अपने गणों की हार से क्रुद्ध शिव ने क्रोध में भरकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया।
शिव के इस कृत्य से माता पार्वती क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने शिव से अपने पुत्र को जिवित करने की माँग की। शिव के मना करने पर पार्वती प्रलयंकारी रूप धारण कर देवताओं से युद्ध को घोर गर्जना की। पार्वती का चंडी रूप देखकर भयभीत देवताओं ने जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
तब शिव ने निर्देश दिया कि विष्णु के उत्तर दिशा में जो भी जीव सबसे पहले मिले तथा जिसकी माँ अपने बच्चे के विपरित मुँह फेरकर सोई हो उस जीव का मस्तक लाकर गणेश को लगा दो। शिव के निर्देशानुसार शिवगण विष्णु के उत्तर दिशा में सोई हथिनी के बच्चे का सिर काटकर ले आए क्योंकि उन्हें वो हथिनी ही सर्वप्रथम अपने बच्चे के विपरित मुँह करके सोती मिली।भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर भगवती का क्रोध शांत किया।
हर्ष और ममता से भरी माता पार्वती ने हृदय में उमड़ते वात्सल्य के सागर के वशीभूत होकर बालक गजानन को हृदय से लगा लिया और उसे समस्त देवताओं से अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।
भगवती के आशीष का सम्मान करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश ने भी बालक गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया।
भगवान शंकर ने भी गणेश को विघ्नहर्ता होने का आशीष दिया । यही नहीं शिव ने गणेश को सर्वप्रथम पूज्य होने के आशीर्वाद के साथ ही अपने समस्त गणों का अध्यक्ष नियुक्त किया । इसी के पश्चात वो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कहलाए जाने लगे।
एक कथा के अनुसार देवतागण अपनी समस्या लेकर शिव के पास आए। शिव के दोनों पुत्रों ने कार्य करने की इच्छा जताई। कार्य कौन करेगा इस बात के निर्णय हेतु भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के समक्ष ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर पहले वापस आने की प्रतियोगिता रखी ।
माता-पिता का आशीर्वाद लेकर कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर जबकि गणेश अपने वाहन मूषक के साथ रवाना हुए । कार्तिकेय क्षण भर में मोर पर बैठकर ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे जबकि गणेश अपनी सवारी मूषक पर धीरे-धीरे आगे बढ़े।
कार्तिकेय शीघ्र ही माता-पिता की दृष्टि से ओझल हो गए किंतु गणेशजी वापस लौटकर माता-पिता से क्षमा माँगते हुए अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा कर ली और कहा कहा- 'मैंने ब्रह्मांड का चक्कर लगा लिया, मेरी दृष्टि में मेरे माता पिता ही मेरे लिए संपूर्ण ब्रह्मांड हैं ।
पुत्र गणेश की बात सुनकर शिव-पार्वती अभिभूत हो गए। क्योंकि उनकी दृष्टि में भी बच्चों के लिए उनके माता-पिता ही संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वरूप हैं।
गणेश द्वारा माता-पिता के सम्मान और उन्हें संसार में सर्वोपरि समझ परिक्रमा लगाने के कारण शिव-पार्वती ने प्रसन्न होकर गणेश को सभी देवी-देवताओं से पहले पूजे जाने का वरदान दिया ।माना जाता है तभी से सर्वप्रथम गणेश पूजन प्रारंभ हुआ है। एक मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में गणेश चतुर्थी के दिन ही बच्चों की प्राप्ति प्रारंभ होती थी।
भारत के विभिन्न राज्यों में गणेश चतुर्थी का त्योहार उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है खासतौर से महाराष्ट्र से बिहार में इस त्योहार की धूम देखी जा सकती है। इतिहास के झरोखों में झाँक कर देखें तो छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में भी गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता था।
इस त्योहार की महत्ता हिंदू धर्मावलंबियों के लिए ही नहीं वरन यह त्योहार समस्त धर्मावलंबियों के लिए महत्त्व रखता है। गणपति की मूर्ति बनाने वाले अथवा अन्य कार्य करने वाले सिर्फ हिन्दू धर्मावलंबी न होकर समस्त धर्मों से संबंधित लोग होते हैं जो पूरी श्रद्धा और समर्पण से कार्य करते हैं। इसलिए गणेश चतुर्थी का त्योहार राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक माना जाता है। गणेश पूजन की प्राचीन परंपराओं को देखते हुए विविधता में एकता वाले देश भारत में धार्मिक सहिष्णुता, समता और एकता बनाए रखने हेतु आज़ादी से पूर्व
लोकमान्य तिलक ने देश की जनता से गणेशोत्सव मनाने का आह्वान किया और इस दौरान भगवान गणेश की मूर्ति को घर या चौराहों पर स्थापित कर चतुर्दशी को उसे जल में विसर्जित कर दिया जाता था। इस उत्सव ने लोगों के को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाते स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मूर्ति विसर्जन की यह परंपरा आज तक यों ही चलती आ रही है परंतु मूर्ति विसर्जन के जल-प्रदूषण की समस्या बढ़ने लगी है क्योंकि सभी लोग अपने-अपने घरों में गणेश की सबसे सुंदर प्रतिमा लाना चाहते हैं। इसी कारण प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ घर ले आते हैं। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी ये मूर्तियाँ पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाती हैं। एक-दो वर्षों से मनुष्य अर्थात् हमने प्रकृति के इस दर्द को समझा और प्रकृति के संरक्षण हेतु इस प्रकार की मूर्तियों पर रोक लगाने का प्रयास किया फलस्वरूप मिट्टी की मूर्तियों का प्रचलन बढ़ गया। खासकर कोरोनाकाल में मनुष्य प्रकृति ख़िलाफ़ जाने का नतीज़ा भुगत ही रहा है। इसी कारण गणेश की इको-फ्रेंडली मूर्ति स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है ।
गौरी गणेश पूजा मंत्र
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्था गतोSपीवा
या स्मरेत पुण्डरीकाक्ष स बाहामायांतर:शुचि:
ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक : लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं
आवाहनं न जानामि , न जानामि विसर्जनं
Sunita Bishnolia © ®
Beautiful post
जवाब देंहटाएंBeautiful post Ur student Harshil Of DPS
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
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